उत्तराखंड देहरादूनRamesh bhatt blog on trivendra govt three years

त्रिवेन्द्र सरकार के 3 साल..घोटालों पर लगाम, गैरसैंण पर फैसला..अभी बड़ा काम बाकी है

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस के फॉर्मूले को अपनाया। मलाईदार पद की चाहत रखने वालों से दूरियां बनाए रखी। पढ़िए सीएम के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट का ब्लॉग

Trivendra singh rawat: Ramesh bhatt blog on trivendra govt three years
Image: Ramesh bhatt blog on trivendra govt three years (Source: Social Media)

देहरादून: साल 2017, मई के महीने पारा आसमान छूने लगा था। जितनी गर्मी बाहर थी, उतनी ही उथलपुथल मन में भी थी। दिल्ली से देहरादून तक आ तो गया, लेकिन सवाल बार बार मन को उद्वेलित कर रहा था कि क्या ये फैसला सही है? मुख्यमंत्री आवास में सीएम त्रिवेंद्र से मुलाकात की तो लंबी चर्चा भी हुई। इस मुलाकात के बाद मेरे मन की शंकाएं दूर होती गई। संसदीय पत्रकारिता में बहुत से नेताओं से मिलना जुलना रहा, लेकिन इस मुलाकात में बिल्कुल ये अहसास नहीं हुआ कि किसी राजनेता से मिला हूं।
पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की जन आकांक्षाएं एक मजबूत नेतृत्व को खोज रही थी। सीएम त्रिवेंद्र के रूप में यह मुमकिन होने लगा है। तीन साल में मुख्यमंत्री ने जो फैसले लिए, वो निश्चित तौर पर राज्य की तकदीर बदलने वाले हैं। तीन साल में राज्य के हर वाशिंदे की जुबान पर ये जरूर आता है कि अपना मुख्यमंत्री ईमानदार है। सीएम त्रिवेंद ने ईमानदारी को सबसे बड़ा हथियार बनाया और जीरो टॉलरेंस के मंत्र के साथ आगे बढ़ते गए। एनएच- घोटाले से लेकर तमाम गड़बड़ियों पर सख्त निगाहें रखनी शुरू की तो लचर ब्यूरोक्रेसी पर भी लगाम कसने लगी। आम तौर पर मुख्यमंत्री बनते ही मुख्यमंत्री आवास, सचिवालय के चौथे फ्लोर या विधानसभा में चापलूसों, दलालों और माफियाओं का जमावड़ा लगना शुरू होने लगता है। लेकिन यहां दृश्य बदल रहा था। सीएम त्रिवेंद्र ने ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखी और ये जीरो टॉलरेंस का ही असर है कि आज सचिवालय, मुख्यमंत्री आवास दलालों से मुक्त नज़र आता है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस के फॉर्मूले को अपनाया। मलाईदार पद की चाहत रखने वालों से दूरियां बनाए रखी। लेकिन इस बीच ये भी चर्चा होने लगी कि बेहद कम मुस्कराने वाला ये शख्स क्या बड़े फैसले ले सकता है? लेकिन सीएम त्रिवेंद्र के दिल में क्या है ये किसी को नहीं पता होता। मैंने करीब से महसूस किया है कि आमतौर पर नेता ये दिखाने की कोशिश करते है कि वो किसी फैसले के लिए बहुत सोच विचार करते हैं। लेकिन सीएम त्रिवेंद्र दिल से फैसले लेने में यकीन करते हैं। तीन साल में मैं ये अच्छी तरह समझा हूं कि पहाड़ उनके दिल में बसता है। ताजा फैसला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
भाजपा ने 2017 के घोषणापत्र में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने पर विचार करने की बात कही थी। त्रिवेंद्र सरकार के लिए इस पर फैसला लेना बेहद मुश्किलों भरा था। जन आकांक्षाओं का दबाव लगातार बना था, लेकिन राजनीति में नफा नुकसान की आशंकाएं भी थी। उलझन होनी तय थी, लेकिन जो हल्की सी मुस्कान के साथ उलझनों से चुटकी में बाहर निकल जाए वही त्रिवेंद्र हैं। उत्तराखंड के इतिहास में गैरसैंण पर सबसे बड़ा फैसला लेकर त्रिवेंद्र ने न सिर्फ राजनीति में एक बड़ी लकीर खींची है बल्कि ये भी जता दिया है कि वो कठोर फैसले लेने में भी पीछे नहीं रहते। चारधाम यात्रा के सफल संचालन व प्रबंधन की व्यवस्थाओं के लिए चारधाम देवस्थानम बोर्ड का गठन करने का भी त्रिवेंद्र सरकार ने ही साहस दिखाया। जबकि इस फैसले पर सरकार को कुछ दायित्वधारियों का भी विरोध झेलना पड़ा था, लेकिन राज्य हित सर्वोपरि की भावना से यह भी मुमकिन हुआ। ब्यूरोक्रेसी उत्तराखंड पर हावी रही है, नौकरशाही को साथ लेकर चलना और राज्य के विकास के लिए योजनाएं बनाना आसान काम नहीं रहा है, लेकिन मैं समझता हूं इस दिशा में भी मुख्यमंत्री बहुत हद तक कामयाब रहे हैं। एक टीम स्प्रिट की भावना अब राज्य में दिखने लगी है।
अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना लागू करना, राज्य में पहली बार इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन करवाना, पलायन आयोग का गठन करवाना, 13 जिलों में 13 नए डेस्टिनेशन, देवभोग प्रसाद योजना, पिरूल नीति, उत्तराखंड को फिल्म शूटिंग का डेस्टिनेशन बनाना ये वो तमाम बड़े फैसले हैं जिनसे त्रिवेंद्र जी ने बड़ी लकीर खींची है। आमतौर पर त्रिवेंद्र जी कम बोलते हैं, लेकिन इन फैसलों से यही दिखता है कि वो कम जरूर बोलते हैं मगर सोच समझकर फैसले लेते हैं। घोषणापत्र किसी भी पार्टी और सरकार की आत्मा की तरह होता है। त्रिवेंद्र सरकार ने घोषणापत्र के सभी बड़े वादे पूरे किए हैं। गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की बात हो, किसानों को ब्याजमुक्त कर्ज देने की बात हो, अटल आयुष्मान जैसी हेल्थकवर स्कीम की बात हो, टेली मेडिसिन वर्चुअल क्लास, 13 नए डेस्टिनेशन ये भी बड़े वादे पूरे हुए है।
तीन साल में त्रिवेंद्र सरकार ने ऐतिहासिक कार्य किए हैं, लेकिन आगे जो चुनौतियां हैं, उनसे पार पाने के लिए भी आज से ही कमर कसनी होगी। रोजगार प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा है। अधिक से अधिक रोजगार सृजन के प्रयास किए जाने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन तब तक रोक पाना असंभव है जब तक वहाँ पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होती। टेली मेडिसिन जैसी आधुनिक तकनीकों का लाभ आम जनता को मिले इसके लिए यह जरूरी है कि गांव गांव तक स्वास्थ्य का ढांचा मजबूत हो। हम उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले दिनों में ऐसी तस्वीरें देखने को न मिलें, जहां महिलाओं को सड़क पर, पुल पर या खेत में डिलीवरी के लिए मजबूर होना पड़े। कार्यकर्ता किसी भी पार्टी की रीढ़ होते हैं, उनकी शिकायतों को भी सुना जाए, उन्हें सम्मान मिले व अधिकारी भी उनकी शिकायतों का निस्तारण करें। तब जाकर ही सरकार के कामकाज आम जनता तक पहुंच सकेंगे।
कुल मिलाकर त्रिवेंद्र सरकार के तीन साल में गांव से लेकर शहरों के समग्र विकास के लिए ईमानदार प्रयास हुए हैं। लेकिन आगे भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। आज भी जनता के बीच मुख्यमंत्री की छवि एक ईमानदार सीएम की है। हम सभी ये उम्मीद करते हैं कि इस ईमानदार नेतृत्व में एक सुंदर, स्वच्छ व समृद्ध उत्तराखंड के निर्माण के हम सब साक्षी बनें।
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(सीएम त्रिवेन्द्र के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट के ब्लॉग से साभार)