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CM त्रिवेन्द्र की अग्निपरीक्षा..क्या ओमप्रकाश के केस में दिखाएंगे ज़ीरो टॉलरेंस?

जीरो टालरेंस का राग अलापने वाली त्रिवेंद्र सरकार की असल अग्नि परीक्षा तो अब होगी। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट की कलम से ये लेख

Trivendra Singh Rawat: Yogesh bhatt article on omprakash and cm trivendra
Image: Yogesh bhatt article on omprakash and cm trivendra (Source: Social Media)

देहरादून: जीरो टालरेंस का राग अलापने वाली त्रिवेंद्र सरकार की असल अग्नि परीक्षा तो अब होगी। उनकी सरकार के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के एक कारनामे ने न सिर्फ सरकार की किरकरी करायी है बल्कि पूरी शासन व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगाया है। उन्होंने लॉकडाउन की तमाम व्यवस्थाओं को धता बताते हुए जिस तरह उत्तर प्रदेश के विधायक और उनके साथ दस लोगों को उत्तराखंड में पूरे सप्ताह भर तक बेरोकटोक घूमने की छूट दे डाली, उससे साफ है कि ओमप्रकाश को किसी की कोई परवाह नहीं।
उन्हीं के आदेश पर देहरादून प्रशासन ने आनन फानन में देहरादून से श्रीनगर, बदरीनाथ और केदारनाथ जाने की अनुमति जारी की। यह तक सुनिश्चित नहीं किया गया जिन्हें अनुमति दी गयी है वह कोरोना संक्रमित नहीं हैं। आश्चर्यजनक यह है कि इस अनुमति के लिए यह तक नहीं ध्यान रखा गया कि जिस बद्रीनाथ धाम जाने की विधायक को इजाजत दी जा रही है, वहां तो अभी कपाट ही नहीं खुले हैं। मसला बेहद गंभीर है। जहां लॉकडाउन में राज्यों की सीमाएं सील हैं, बाहर से आने वालों पर पूरी तरह प्रतिबंध है वहां राज्य के ‘नंबर टू’ अधिकारी द्वारा इस तरह की अनुमति दिया जाना अपने आप में बड़े सवाल खड़े कर रहा है। उल्लेखनीय यह है कि इस अनुमति के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्वर्गीय पिता के नाम का इस्तेमाल किया गया है। उत्तर प्रदेश के विधायक अमनमणि त्रिपाठी को यह अनुमति योगी आदित्यनाथ के स्वर्गीय पिता के पित्र कर्म के लिए दी गयी।
सवाल यह उठता है कि जो मुख्यमंत्री लॉकडाउन के नियमों का पालन करने के लिए अपने पूर्व संस्कार के पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए उनके पिता के नाम इस तरह की अनुमति कैसे दे दी गयी ? इस तथ्य से हर कोई वाकिफ है कि उत्तराखंड मूल के योगी आदित्यनाथ लॉकडाउन के कारण अपने पिता के अंतिम संस्कार में नहीं आए, यही नहीं ऐसा करके उन्होंने कोरोना महामारी से लड़ने और लॉकडाउन का पालन करने का संदेश भी दिया। सवाल उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों पर है, मुददा इतना गंभीर है कि दोनों सरकारों की ओर से स्थिति साफ होनी जरूरी है। यह स्पष्ट होना जरूरी है कि वाकई दोनों सरकारों की इसमें कोई भूमिका है या फिर यह सिर्फ ओमप्रकाश और अमनमणि त्रिपाठी के बीच की कहानी है।

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अगर कहानी सिर्फ अमनमणि और ओमप्रकाश के बीच की है तो साफ है कि ओमप्रकाश सीधे तौर पर शासन, सत्ता और पद के दुरूपयोग के दोषी हैं। इधर यह मामला प्रकाश में आने के बाद योगी आदित्यनाथ के भाई ने भी इस पर सवाल उठाया है। मुख्यमंत्री को इसे गंभीरता से लेते हुए ओमप्रकाश और अमनमणि के रिश्तों की पड़ताल करानी चाहिए, सरकार की छवि बिगाड़ने पर कड़ा एक्शन लेना चाहिए। सनद रहे मुख्यमंत्री इस मामले में एक्शन नहीं लेते हैं तो निश्चित तौर फिर सवाल उनकी भूमिका पर भी उठेगा। बहुत संभव है कि ओमप्रकाश ने यह दुस्साहस बिना मुख्यमंत्री की ‘शह’ के न किया हो।
बताते चलें कि ओमप्रकाश त्रिवेंद्र सरकार के बेहद करीबी और ताकतवर नौकरशाहों में शुमार हैं। उनके साथ तमाम विवाद जुड़े हैं लेकिन उन्हें सरकार का भरोसा हासिल है। कई मौकों पर पहले भी उनके कारण सरकार पर सवाल उठे हैं लेकिन हर बार सवाल खारिज होते रहे हैं। मसला दिल्ली में मुख्य स्थानिक आयुक्त के पद का हो, डोईवाला अस्पताल को पीपीपी पर दिये जाने का हो, खनन की फाइलों के मूवमेंट का हो या उत्तराखंड का बजट दूसरे प्रदेश में खपाने का, अतिक्रमण हटाओ अभियान की कमान का हो या फिर उत्तराखंड निवास दिल्ली में हुए कथित स्टिंग का और नौकरशाही में खेमेबंदी का, सत्ता के गलियारों में ओमप्रकाश का नाम अक्सर उछलता ही रहा है मगर सरकार अनदेखी करती रही।
अगर इस प्रकरण में सरकारों की भूमिका है तो सवाल और गहरे हैं। मसलन योगी आदित्यनाथ जब अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए तो अमनमणि को पितृ कर्म के लिए क्यों भेजते हैं ? दूसरा यह कि जब बदरीनाथ के कपाट बंद हैं तो वहां कौन से पितृ कर्म के लिए अमनमणि जा रहे थे ? कहीं ऐसा तो नहीं कि योगी के स्वर्गीय पिता का पितृ कर्म सिर्फ बहाना हो।
सरकारें अगर इसमें मिली हुई हैं तो जनता के साथ यह कितना बड़ा छल है। सरकार के नियम सबके लिए एक बराबर क्यों नहीं ? क्या यह मान लिया जाए कि कोरोना से जंग के नाम पर आंखों में धूल झौंकी जा रही है । गौरतलब है कि आम जनता को राज्य के भीतर आने जाने की इजाजत नहीं है, इसके लिए उसे पास बनाना होगा। वाजिब कारण बताना होगा और इसके लिए अपनी पूरी पहचान के साथ ही तमाम प्रमाण भी देने होंगे। ई-पास बनाने की व्यवस्था भी पारदर्शी नहीं है। आम आदमी ई- पास के लिए दिए लिंक पर आवेदन तो करता है लेकिन उसका आवेदन रिजेक्ट कर दिया जाता है।

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आम आदमी अफसरों से गुहार लगाता है, मंत्रियों से सिफारिश कराता है मगर उसका काम नहीं बनता, उसे लॉकडाउन की अहमियत और मजबूरियां गिना दी जाती हैं। कानून और वायरस दोनों का खौफ एक साथ दिखाया जाता है, तमाम नियम पढ़ाए जाते हैं। ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि सरकारी काम के लिए निकले या वापस अपनी डयूटी पर लौटे लोगों को चौदह दिन के लिए क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया गया।
क्या गारंटी है कि लॉकडाउन के बीच इस तरह की अनुमति के पीछे कोई बडा षडयंत्र नहीं था ? इसकी भी क्या गारंटी है कि उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के तीन जिलों में आमद दर्ज कर गए विधायकों और उनके साथियों से उत्तराखंड में संक्रमण नहीं फैला ? सच्चाई तो यह है कि चमोली जिले का प्रशासन सतर्क न होता तो इसका पता भी नहीं चलता। बता दें कि राज्य में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह कोरोना से निपटने को रात दिन एक किए हुए हैं, केंद्र की गाइडलाइनों को राज्य में सिर्फ लागू ही नहीं किया गया बल्कि सीधे मुख्य सचिव के स्तर से कड़ी निगरानी भी हुई, मगर अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने न सिर्फ उनकी डेढ़ महीने की पूरी मेहनत पर पानी फेरा बल्कि पूरी सरकार पर ही सवाल खड़ा कर दिया है।
सरकार की जानकारी के लिए बता दें कि इसी तरह के एक मामले में महाराष्ट्र सरकार ने अपने प्रधान सचिव गृह अमिताभ गुप्ता पर बड़ी कार्यवाही करते हुए उन्हें फोर्स लीव पर भेजा हुआ है। अमिताभ गुप्ता ने मुंबई के एक उद्योगपति दीपक बधावन परिवार को लॉकडाउन के दौरान महाबलेश्वर जाने के लिए सिफारिशी पत्र दिया। हाल ही में चर्चित रहे यस बैंक और डीएचएफएल धोखाधड़ी के केस में आरोपी रहे बधावन परिवार के 23 लोगों को लॉकडाउन के दौरान खंडाला से महाबलेश्वर तक की यात्रा कराने के लिए प्रधान सचिव गृह ने जो सिफारिशी पत्र लिखा उसमें बधावन को अपना पारिवारिक मित्र बताते हुए लॉकडाउन में यात्रा की अनुमति दी गयी। महाराष्ट्र सरकार को पता चला तो सरकार की ओर से बयान आया कि यह गंभीर मामला है। सरकार ने मामले में जांच बैठायी है और परिणाम आने तक अमिताभ गुप्ता को जबरन छुटटी पर भेजा गया है।
बहरहाल अब निगाहें सरकार के ‘एक्शन’ पर है। मुददा जीरो टालरेंस का है, देखना यह है कि सरकार कितनी संजीदा है। इस मामले में सरकारी की छवि बिगाड़ने और शासन व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों पर एक्शन की दरकार है ताकि मनमानी करने और अराजकता फैलाने वालों को सबक मिल सके। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने लगभग हर भाषण में जीरो टालरेंस की बात करते हैं। अब उनके इस दावे की पड़ताल का वक्त है। देखने वाली बात होगी कि कोरोना संकट के कठिन दौर में कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ‘जीरो टालरेंस’ दिखा कर नजीर पेश करते हैं या उनका दावा हवा हवाई बन कर रह जाता है।