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उमेश कुमार...उत्तराखंड पर बड़ा सवाल, पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अजय ढौंडियाल का ब्लॉग

उमेश कुमार। इस नाम से आज उत्तराखंड के ज्यादातर लोग वाकिफ हैं। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार डॉ.अजय ढौंडियाल का ब्लॉग

Dehradun News: Blog of Senior Journalist dr Ajay Dhoundiyal on Umesh Kumar
Image: Blog of Senior Journalist dr Ajay Dhoundiyal on Umesh Kumar (Source: Social Media)

देहरादून: उमेश कुमार। इस नाम से आज उत्तराखंड के ज्यादातर लोग वाकिफ हैं। नाम के साथ साथ शक्ल से भी वाकिफ हो चुके हैं क्योंकि ये व्यक्ति रोज फेसबुक पर लाइव आकर पहाड़ और पहाड़ियों का सबसे बड़ा हितैशी होने का स्वांग जो करता है। फेसबुक पर लाइव आने का मुद्दा चाहे कुछ भी हो, ये उसको पहाड़ और पहाड़ियों से जोड़ता है और फिर जोर जोर से हुंकार भरता है कि मैं भोले भाले पहाड़ियों का अहित किसी भी हालत में नहीं होने दूंगा। हालांकि हमारे पहाड़ के लोग स्वभाव से ही भोले भाले होते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वे कमजोर या बेवकूफ होते हैं। सीधा- सादा, भोला-भाला होना कोई कमजोरी नहीं है। इन्हीं सीधे-सादे और भोले-भाले लोगों ने बिना किसी के नेतृत्व के पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए ऐतिहासिक आंदोलन लड़ा था। क्या इस बात को उमेश कुमार नाम का व्यक्ति भूल रहा है? अगर नहीं, तो फिर जबरन उत्तराखंडियों का नेतृत्व करने क्यों घुसने की कोशिश कर रहा है?
जरा उमेश कुमार के लाइव मुद्दों पर आइए। मैंने भी उमेश के लाइव देखे हैं। एक पत्रकार होने के नाते, पहले तो मुझे वो मुद्दे ही नहीं लगते जिन पर उमेश बात करता है। वो एक सोचा समझा एजेंडा है। उमेश ने फेसबुक पर एक खास एजेंडे के तहत जंग छेड़ी हुई है। दरअसल आम आदमी इस तरह के एजेंडे को नहीं समझ पाता। भले ही आज का आम आदमी हर तरह से बहुत समझदार है, फिर भी अगर कोई पत्रकार बनकर सत्ता या व्यवस्था के खिलाफ खास एजेंडे के तहत मुहिम चलाता है तो आम आदमी एक तरह से उसके सपोर्ट में नजर आता है। यह सब इसलिए होता है कि उसे कहीं न कहीं ये आभास नहीं होता कि ऐसा एजेंडा चलाने वाला सिर्फ और सिर्फ अपने व्यक्तिगत हितों के लिए या फिर उसके हित न करने की वजह से दुश्मन बने सत्ता और व्यवस्था संभाल रहे लोगों को पदच्युत करने के ध्येय से ये सब कर रहा है। अपने एजेंडे में उमेश कुमार नाम का व्यक्ति पहाड़ और पहाड़ियों के हितों को जोड़ देता है। क्योंकि उसको पता है कि ऐसा करने से लोग उसे अपना हितैशी मानेंगे।

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यहां सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या उमेश कुमार ही पहाड़ और पहाड़ियों के इकलौते हितैषी हैं। पहाड़ प्रेम अचानक फेसबुक पर क्यों जगा है? फेसबुक से पहले तो उमेश कुमार के हाथ में एक भरा पूरा न्यूज चैनल था जिसका नाम समाचार प्लस था। इस चैनल से तो कभी उमेश कुमार ने पहाड़ और पहाड़ियों के हित और अहित की बात नहीं की। इस चैनल पर तो कभी पहाड़ की सरकार और व्यवस्था चलाने वालों के खिलाफ इस तरह का एजेंडा नहीं चलाया गया। अचानक चैनल बंद होने के बाद ऐसी मुहिम और एजेंडा क्यों शुरू किया गया?
उत्तराखंड में तमाम अखबार, न्यूज चैनल, न्यूज पोर्टल और स्वतंत्र पत्रकार हैं। वो भी बड़े नामी-गिरामी। वक्त वक्त पर व्यवस्था पर चोट करने वाले भी। अगर सरकार भटकती है, जनमुद्दों पर ध्यान नहीं देती, व्यवस्था में भ्रष्टाचार होता है, विकास कार्यों और योजनाओं में खामियां होती हैं या फिर उनका क्रियान्वयन नहीं होता तो इन सभी मुद्दों को पहाड़ के पत्रकार प्रमुखता से उठाते हैं। सरकार के आंख और कान खोलते हैं। फिर उमेश कुमार किस हैसियत से फेसबुक पर ये चिल्लाता है कि सिर्फ वही पहाड़ की बात उठा रहा है?

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हम सब जानते हैं कि ऐसी कोई सरकार नहीं जो शत प्रतिशत जनता की उम्मीदों पर खरी उतरे। हर किसी की दृष्टि से हर कार्य कभी दुरुस्त हो ही नहीं सकता। हां, लोकतंत्र का चौथा खंभा होने के नाते पत्रकारिता का कर्म और धर्म है कि वो बार बार व्यवस्था को दुरुस्त बनाने की ओर कार्य करे। उसके अच्छे कार्यों को भी जनता के सामने उसी तरह प्रमुखता से लाए जिस तरह खामियों को लाता है। लेकिन अगर सिर्फ नकारात्मकता को ही प्रमुखता दी जाएगी और एजेंडे के तहत हर कार्य, योजना को जनविरोधी करार देने या साबित करने की कोशिश होगी तो इसे कौन साजिश नहीं कहेगा?
आज जन-जन पत्रकार है, क्योंकि उसके हाथ में सोशल मीडिया है। जिसके हाथ में फोन है समझो वो पत्रकार है। उत्तराखंड के लोग तो इतने जागरूक और सजग हैं कि वे अपनी बातें (चाहे वो व्यवस्था पर हों या उनकी व्यक्तिगत) खुलकर सोशल मीडिया पर कहते हैं। यहां मैं फिर उत्तराखंड आंदोलन की बात दोहरा रहा हूं। जिन उत्तराखंडियों ने देश का एक तरह से सबसे बड़ा और सबसे शांतिपूर्ण आंदोलन बिना किसी के नेतृत्व में लड़ा वो अपने हित और अहित की आवाज खुद बुलंद कर सकते हैं। उन्हें उमेश कुमार जैसे शख्स की कोई जरूरत नहीं है जिसका पहाड़ और उत्तराखंड से दूर दूर तक का कोई सरोकार नहीं है। उत्तराखंड में पैर धरने के लिए जमीन तलाशने वाले ऐसे लोगों ने इस प्रदेश का दोहन किया। जब उत्तराखंड में आए थे तब चलने के लिए स्कूटर भी न था और आज अरबों की संपत्ति के मालिक हैं और अपने खुद के चार्टेड प्लेन से उड़ रहे हैं। आखिर कहां से इकट्ठा कर ली ये सारी संपत्ति? ऐसी कौन सी पत्रकारिता की?
प्रदेश के वर्तमान मुखिया ने ऐसे लोगों को बर्दाश्त नहीं किया और ऐसे लोगों को सबक सिखाने के लिए जेल में ठूंसने की हिम्मत दिखाई। अब ये हमारे प्रदेश के उसी मुखिया के खिलाफ व्यक्तिगत लड़ाई सोचे समझे एजेंडे के तहत लड़ रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि अपनी इस लड़ाई में पहाड़-पहाड़ का राग अलापकर पहाड़ियों को इमोशनल ब्लैकमेल करें। पहाड़ियों को पहाड़ियों से लड़वाने की इनकी इस हिमाकत का जवाब दिया जाना चाहिए।