उत्तराखंड देहरादूनTwo girls committed suicide in Dehradun

देहरादून में दो छात्राओं की आत्महत्या से हड़कंप, दो परिवारों में मचा कोहराम

19 साल की फिजा बीए की स्टूडेंट थी, जबकि 22 साल की अंजलि एमए कर रही थी। बीते दिन दोनों छात्राओं ने खुदकुशी कर ली।

Dehradun student suicide: Two girls committed suicide in Dehradun
Image: Two girls committed suicide in Dehradun (Source: Social Media)

देहरादून: बदले माहौल में छात्र डिप्रेशन के चलते खतरनाक कदम उठाने लगे हैं। बिना सोचे समझे कदम उठाने पर वे परिजनों को कभी न भूलने वाला दर्द भी दे जाते हैं। शुक्रवार को देहरादून में भी यही हुआ। यहां दो छात्राओं ने खुदकुशी कर ली। खुदकुशी के दोनों मामले एक-दूसरे से अलग हैं। दोनों में ही पुलिस को छात्राओं के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। खुदकुशी की वजह का भी पता नहीं चल सका है। पुलिस सभी एंगल से मामले की जांच कर रही है। पहला मामला डालनवाला कोतवाली क्षेत्र का है, जहां एक छात्रा ने फांसी लगा ली। मरने वाली छात्रा की शिनाख्त फिजा के रूप में हुई। 19 साल की फिजा एमकेपी पीजी कॉलेज में पढ़ती थी। उसका परिवार आराघर क्षेत्र में रहता है। गुरुवार की देर रात फिजा ने जहरीला पदार्थ गटक लिया। हालत बिगड़ने पर परिजन उसे तुरंत अस्पताल ले गए, लेकिन फिजा बच नहीं सकी। अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। परिजनों ने बताया कि फिजा बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट थी। फिजा ने अपनी जान क्यों ली, इसका पता नहीं चल सका है। हालांकि परिजनों का कहना है कि वो पिछले कई दिनों से डिप्रेशन से जूझ रही थी। परिजनों को ये तो पता था कि फिजा परेशान है, लेकिन वो खुदकुशी जैसा कदम उठा लेगी ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था। आगे पढ़िए दूसरी घटना

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खुदकुशी की दूसरी घटना इंदिरा कॉलोनी की है। जहां 22 साल की अंजलि तिवारी ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। अंजलि एमए की छात्रा थी। खुदकुशी की वजह का पता नहीं चल सका है। पुलिस ने बताया कि लाश के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। पुलिस ने दोनों शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। मामले की जांच जारी है। कोरोना काल में छात्रों में डिप्रेशन और खुदकुशी जैसे मामले बढ़े हैं। कहीं ना कहीं बच्चों में बढ़ते डिप्रेशन के लिए परिजन भी जिम्मेदार हैं। पहले लोगों के पास बच्चों से बात करने का समय था, जो अब नहीं रहा। व्यस्त दिनचर्या की वजह से अभिभावकों के पास बच्चों के लिए समय नहीं है, जिस कारण वह उनसे बात करना भी मुनासिब नहीं समझते। लोगों ने बच्चों की मनोदशा को समझना बंद कर दिया है। जिससे बच्चों की सोच संकुचित होने लगी है। साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि अभिभावकों को चाहिए कि वह बच्चों से बात करें और उनके साथ कुछ समय बिताएं, इससे बच्चों की सोच में जरूर बदलाव आएगा।