उत्तराखंड देहरादूनCaravan article on the resignation of former CM Trivendra Singh Rawat

उत्तराखंड: आखिर क्यों गई पूर्व CM त्रिवेन्द्र की कुर्सी..’कारवां’ ने किया बहुत बड़ा खुलासा

न्यूज पोर्टल ‘द कारवां’ की रिपोर्ट के मुताबिक त्रिवेंद्र सिंह रावत कुंभ को सीमित रखने की कोशिश कर रहे थे और यही कोशिश उनके इस्तीफे की बड़ी वजह बनी।

Former CM Trivendra Singh Rawat: Caravan article on the resignation of former CM Trivendra Singh Rawat
Image: Caravan article on the resignation of former CM Trivendra Singh Rawat (Source: Social Media)

देहरादून: 9 मार्च 2021...नवगठित राज्य उत्तराखंड एक बार फिर बड़े राजनीतिक परिवर्तन का गवाह बना। लगभग चार साल से उत्तराखंड की बागडोर संभालने वाले पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह ने अचानक राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले ही दिन तीरथ सिंह रावत प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बन गए। जिस वक्त ये सब हुआ, उस समय त्रिवेंद्र सिंह रावत बतौर मुख्यमंत्री अपना चार साल का कार्यकाल पूरा करने वाले थे, सिर्फ 9 दिन रह गए थे कि तभी उनकी कुर्सी छिन गई। अगले ही दिन त्रिवेंद्र मुख्यमंत्री से पूर्व मुख्यमंत्री हो गए। किसी ने कहा कि मंत्रियों-विधायकों के असंतोष की वजह से उनकी कुर्सी गई, तो किसी ने इसके लिए बेलगाम नौकरशाही को जिम्मेदार बताया। अब त्रिवेंद्र को हटाने को लेकर ‘द कारवां’ पत्रिका ने एक बड़ा खुलासा किया है। आगे पढ़िए

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‘द कारवां’ के मुताबिक बीजेपी के लिए त्रिवेंद्र को चुनाव से ठीक एक साल पहले हटाने का खतरा मोल लेना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी ऐसा किया गया। इसके पीछे की वजह ये है कि त्रिवेंद्र महाकुंभ को प्रतीकात्मक रखना चाहते थे। वो कुंभ को सीमित रखने की कोशिश कर रहे थे और यही कोशिश उनके इस्तीफे की बड़ी वजह बनी। वेब पोर्टल ‘द कारवां’ की रिपोर्ट में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और बीजेपी नेताओं से बातचीत के आधार पर ये बात कही गई है। दरअसल महाकुंभ के आयोजन को केंद्र मॉनिटर करता है। इसके लिए केंद्र बड़ी धनराशि उपलब्ध कराता है। ऐसे में केंद्र को त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुंभ को प्रतीकात्मक रखने की योजना पसंद नहीं आई। केंद्र की मंशा कुंभ को भव्य तौर पर आयोजित करने की थी। ‘द कारवां’ के आर्टिकल में दावा किया गया है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी के नेता प्रतीकात्मक कुंभ के विचार से नाखुश थे। वो न सिर्फ भव्य आयोजन चाहते थे, बल्कि ये भी चाहते थे कि कोविड के कम से कम प्रतिबंधों के साथ महाकुंभ का आयोजन किया जाए

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यूपी में भी अगले साल चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में केंद्र कुंभ को सीमित कर के हिंदुओं को नाराज करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहता था। कुंभ को सीमित रखने से अखाड़ों के अनुयायी नाराज हो सकते थे। आश्रमों को मिलने वाले दान में कमी आ सकती थी। संतों को लगने लगा था कि उत्तराखंड सरकार कुंभ को टालने की कोशिश कर रही है। 6 मार्च को जब बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को बताया कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा उनसे मिलना चाहते हैं तो त्रिवेंद्र समझ चुके थे कि उनकी कुर्सी जाने वाली है। इस मुलाकात में पार्टी हाईकमान ने साफ कर दिया कि साल 2022 का विधानसभा चुनाव बीजेपी उनके नेतृत्व में नहीं लड़ेगी। इस तरह बीजेपी के बड़े नेताओं, अखाड़ों और त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच चल रही खींचतान में अखाड़े भारी पड़े और इस पूरे नाटक का पटाक्षेप त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के साथ हुआ।