उत्तराखंड रुद्रप्रयागstory of Vijendra in Kedarnath disaster

केदार त्रासदी: जब आपदा में खोई पत्नी 19 महीने बाद मिली, रो पड़ी थी हर आंख..बन रही है फिल्म

केदारनाथ आपदा 16 जून 2013 वो तारीख, जिसने उत्तराखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ये कहानी भी पढ़िए

Kedarnath disaster: story of Vijendra in Kedarnath disaster
Image: story of Vijendra in Kedarnath disaster (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: केदारनाथ आपदा 16 जून 2013 वो तारीख, जिसने उत्तराखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज उस त्रासदी की 8वीं बरसी है। केदारनाथ आपदा..जहां सभी उम्मीदें खत्म हो गई थी। ना जाने कितनी मांगों के सिंदूर उजड़़ गए, ना जाने कितनी मां की गोद सूनी हो गई। इसी आपदा के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं हुई, जिनके बारे में सुनकर हर किसी के रौंगटे खड़े हो गए। इन्हीं घटनाओं में से एक घटना सच्चे प्रेम की घटना भी है। चारधाम यात्रा पर निकले 45 साल के विजेंद्र सिंह राठौर और उनकी पत्नी लीला 2013 की केदारनाथ आपदा की चपेट में आ गए थे। विजेंद्र सिंह राठौर अपने परिवार के साथ केदारनाथ में थे। अचानक बाढ़ आ गई और लोगों में भगदड़ मच गई। विजेंद्र अपनी पत्नी से थोड़ी ही दूरी पर थे, पानी के तेज बहाव में पता ही नहीं चला कि उनकी पत्नी कहां गई। विजेंद्र के पांच बच्चे अपनी मां को खोने की खबर पाकर फूट-फूटकर रोने लगे थे। काफी ढूंढा पर पत्नी नहीं मिली। विजेंद्र बेतहाशा जंगलों में, नदियों के किनारे और गांवों में भटकने लगे थे। आगे पढ़िए

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कहते हैं कि उम्मीद हो तो दुनिया कायम है, ऐसा ही कुछ विजेंद्र के साथ हुआ। वो राजस्थान तो लौट गए लेकिन बार बार वापस आते रहे। विजेंद्र ने अपनी पत्नी की तलाश में डेढ़ साल तक कम से कम उत्तराखंड के हजार गांवों की खाक छानी, इस दौरान उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कभी सड़क पर सोये, तो कभी भूखे रहे इस संघर्ष में विजेंद्र का पुश्तैनी मकान भी बिक गया। सरकार ने मुआवज़ा देने की कोशिश की, मगर विजेंद्र ने मना कर दिया। वो मानने को तैयार नहीं थे कि उनकी लीला इस दुनिया में नहीं रही, विजेंद्र को यकीन था कि उनको लीला जरुर मिलेंगी। आखि‍रकार विजेंदर के लिए वो खुशी का लम्हा मंगलवार 3 फरवरी 2015 को आया। उत्तरकाशी जिले के एक गांव में लोगों ने उन्हें बताया कि जैसी तस्वीर उनके पास है, वैसी ही दिखने वाली एक महिला पास के गंगोली गांव में दिखी है।

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विजेंदर ने जब उस महिला को देखा तो वह उनकी पत्नी लीला ही थी. लीला को देखकर विजेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, वे लीला को अपने साथ गांव ले आए। 19 महीने भटकने के बाद विजेंद्र को उनकी पत्नी मिल ही गई, जिसको आधिकारिक तौर पर मरा हुआ घोषित कर दिया गया था। मगर विजेंद्र सिंह को यकीन था कि लीला जिंदा हैं। इस भयानक हादसे ने लीला को मानसिक तौर पर बेहद कमजोर बना दिया है, अब वह बोलती नहीं बल्कि बस मुस्कुराती भर है। विजेंद्र और लीला की ये कहानी अब फिल्मी पर्दे पर दिखाई जानी है। सिद्धार्थ रॉय कपूर और विनोद कापड़ी मिलकर एक फिल्म बना रहे हैं। विनोद कापड़ी इससे पहले कई शानदार फिल्में पेश कर चुके हैं। इस कहानी में एक पारिवारिक जीवन के संघर्षों की भी छवि देखने को मिलेगी और पति -पत्नी के प्रेम और विश्वास की एक कथा से भी आपको रुबरु होने को मिलेगा। उम्मीद है कि ये फिल्म बड़े पर्दे पर शानदार प्रदर्शन करेगी।