उत्तराखंड ऋषिकेशScientific report on the danger of disaster like Kedarnath in Uttarakhand

उत्तराखंड में फिर से केदारनाथ जैसी आपदा का खतरा, वैज्ञानिकों ने बताई खतरे की वजह

वैज्ञानिक बादल फटने की बढ़ती घटनाओं के लिए टिहरी बांध को भी जिम्मेदार बताते हैं। आगे पढ़िए पूरी रिपोर्ट

Kedarnath disaster Uttarakhand: Scientific report on the danger of disaster like Kedarnath in Uttarakhand
Image: Scientific report on the danger of disaster like Kedarnath in Uttarakhand (Source: Social Media)

ऋषिकेश: साल 2013 में आई केदारनाथ त्रासदी का भयावह मंजर आज भी भुलाए नहीं भूलता। 16-17 जून 2013 को बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं ने रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर और अल्मोड़ा समेत कई जिलों में तबाही मचाई थी। आपदा में 4400 से ज्यादा लोग मारे गए या लापता हो गए। हजारों भवन, सड़कों और पुलों का नामों-निशान मिट गया। इन दिनों उत्तराखंड में जिस तरह भारी बारिश और लैंडस्लाइड की घटनाएं हो रही हैं, उसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने प्रदेश में केदारनाथ जैसी त्रासदी फिर होने की आशंका जताई है। इन दिनों देहरादून, नैनीताल, चंपावत, पिथौरागढ़ और टिहरी समेत कई इलाकों में भारी बारिश हो रही है। प्री-मानसून में ही उत्तराखंड में चार अलग-अलग जगहों पर बादल फट चुके हैं। चिंता वाली बात ये भी है कि प्रदेश में आपदा की दृष्टि से 308 संवेदनशील गांवों का अब तक विस्थापन नहीं हुआ है। पिथौरागढ़ जिले में 79 और चमोली-बागेश्वर में 40 से ज्यादा गांवों का विस्थापन होना है। इन गांवों में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं।

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आपदा प्रबंधन विभाग के निदेशक पीयूष रौतेला के मुताबिक प्रदेश में बादल फटने की सबसे बड़ी घटना 1952 में हुई थी। तब पौड़ी जिले के दूधातोली की नयार नदी में बाढ़ आ गई थी और सतपुली कस्बे का अस्तित्व खत्म हो गया था। अब हर मानसूनी सीजन में 15 से 20 घटनाएं हो रही हैं। बादल फटने की वजह से ही केदारनाथ में आपदा आई थी। मौसम विज्ञानी इसकी वजह भी बताते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जून से सितंबर का मानसून सीजन जुलाई-अगस्त में सिकुड़ रहा है। जो बारिश 7 दिनों में होती थी, वो 3 दिन में हो रही है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में आपदा प्रबंधन विभाग के निदेशक पीयूष रौतेला ने कुछ खास बातें बताई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ‘’उत्तराखंड में बादल फटने की पहली बड़ी घटना 1952 में हुई थी। इससे पौड़ी जिले के दूधातोली की नयार नदी में बाढ़ आ गई थी और सतपुली कस्बे का अस्तित्व खत्म हो गया था। लेकिन अब हर मानसूनी सीजन में 15 से 20 घटनाएं हो रही हैं। केदारनाथ त्रासदी भी बादल फटने के कारण ही हुई थी, जिसमें बीस हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। दस हजार अभी तक लापता है।’’आगे पढ़िए

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मैदानों में वन क्षेत्र खत्म होना भी इसकी अहम वजह है। दैनिक भास्कर की ही रिपोर्ट में वाडिया इंस्टीट्यूट के जियो-फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार का बयान लिखित है। उनके मुताबिक ‘’उत्तराखंड में पहले भी बादल फटते थे। लेकिन अब मल्टी क्लाउड बर्स्ट यानी बहुत सारे बादल एक साथ एक जगह पर फट रहे हैं।’’ उत्तराखंड में कई जगह हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट चल रहे हैं। नदी का प्राकृतिक बहाव रोकने से मुश्किलें बढ़ गई हैं। आपको जानकर हैरानी होगी की वैज्ञानिक बादल फटने की घटनाओं के लिए टिहरी बांध निर्माण को भी अहम वजह मानते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक भागीरथी नदी का कैचमेंट एरिया पहले कम था, बांध बनने के बाद वो अधिक हो गया। एक जगह इतना पानी इकट्ठा होने से बादल बनने की प्रक्रिया में तेजी आई, ये भी बादल फटने की घटनाओं की अहम वजहों में से एक है।