देहरादून: ‘टाटा नमक होगा, देश का नमक...हमारा नमक तो पिस्यूं लूंण (पहाड़ी नमक) है’ सोशल मीडिया पर ये लाइनें अक्सर पढ़ने को मिल जाती हैं। पहाड़ी नमक के स्वाद को सिर्फ शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इसे हम कंपलीट फूड कहें तो गलत नहीं होगा, शहरों में तो हम जैसे लोग पहाड़ी नमक के लिए तरस कर रह जाते हैं। आज हम आपको पिस्यूं लूंण के अलावा इस नमक से अपनी जिंदगी में मिठास भरने वाली महिलाओं की कहानी बताएंगे। इन महिलाओं ने ‘नमकवाली’ संस्था के माध्यम से सिलबट्टे में पिसे नमक को देश के कोने-कोने में पहुंचाने का बीड़ा उठाया है और ये सभी अपने मकसद में कामयाब भी हो रही हैं। देहरादून से शुरू हुई इस पहल से तमाम पहाड़ी महिलाएं जुड़ चुकी हैं और अपने बनाए खाद्य पदार्थों को बाजार में पहुंचा रही हैं। नमकवाली कंपनी मुख्य रूप से सिलबट्टे पर पिसा नमक तैयार करती है। इसकी खास बात यह है कि ये बिल्कुल नैचुरल व ऑर्गेनिक है। इसके अलावा कंपनी घी भी तैयार करती है।
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नमकवाली कंपनी की शुरुआत करने वाली शशि बहुगुणा रतूड़ी बताती हैं कि हम सिलबट्टे में पिसे नमक को मार्केट में उतारना चाहते थे। इसी सोच के चलते साल 2017 में हमने नमकवाली की शुरुआत की। धीरे-धीरे लोगों का अच्छा रेस्पांस मिलने लगा। सोशल मीडिया से भी हेल्प मिली। अब हम देश के हर हिस्से में पहाड़ी नमक पहुंचा रहे हैं। मुंबई से लेकर कोलकाता तक देश का कोई ऐसा शहर नहीं जहां पहाड़ी नमक की सप्लाई न हो रही हो। शशि रतूड़ी साल 1982 से समाज सेवा के काम से जुड़ी हैं। वो बताती हैं कि पहाड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत है। अच्छी बात ये है कि महिलाएं अब जागरूक हो रही हैं। बीते सालों में नमकवाली ब्रांड के घी, नमक और मसाले की डिमांड बढ़ी है। एक ओर जहां सिलबट्टे का चलन खत्म हो रहा है तो वहीं हमारे साथ जुड़ी महिलाएं इसी के इस्तेमाल से रोजगार हासिल कर रही हैं। अपनी और अपने जैसी कई महिलाओं की जिंदगी बदल रही हैं।