उत्तराखंड अल्मोड़ाIndias first grass conservatory in ranikhet uttarakhand

उत्तराखंड में तैयार है देश की पहली ग्रास कन्जरवेट्री, बेमिसाल हैं इसकी खूबियां

घास की 90 से ज्यादा प्रजातियों के साथ अल्मोड़ा के रानीखेत (Indias first grass conservatory ranikhet) में तैयार हुआ देश का पहला घास संरक्षण केंद्र-

Indias first grass conservatory ranikhet: Indias first grass conservatory in ranikhet uttarakhand
Image: Indias first grass conservatory in ranikhet uttarakhand (Source: Social Media)

अल्मोड़ा: प्रकृति ने हर चीज बहुत सोच समझ कर बनाई है। पेड़ पौधों से लेकर घास तक हर चीज का अपना महत्व है। इन चीजों का संरक्षण भी हो रहा है।पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में घास का अपना महत्व है। विभिन्न पौधों के बीच घास की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हैं। घास मिट्टी (Indias first grass conservatory ranikhet) की उर्वरता को तो बढ़ाती ही है वहीं भूमि कटाव को भी रोकती है। ताज्जुब की बात है कि पेड़ पौधों का तो संरक्षण किया जा रहा है मगर घास का संरक्षण अबतक देश में कहीं नहीं किया गया है। अच्छी खबर है कि उत्तराखंड ने इसको सीरियसली लिया और अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में देश का पहला घास संरक्षण केंद्र बनाया गया है। बीते रविवार को इसे जनता के लिए खोल दिया गया है। यह घास संरक्षण केंद्र देश का पहला घास संरक्षण केंद्र है। इससे पहले किसी राज्य में घास के संरक्षण के विषय में नहीं सोचा गया है। रानीखेत में मौजूद यह केंद्र दो एकड़ में फैला हुआ है। क्या आप जानते हैं कि इस केंद्र में घास की 90 प्रकार की प्रजातियां हैं। इन प्रजातियों के वैज्ञानिक, पारिस्थितिक, औषधीय और सांस्कृतिक महत्व हैं। इस घास संरक्षण केंद्र को कालिका वन रेंज में स्थापित किया है। इस केंद्र को क्षतिपूरक वनीकरण प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (सीएएमपीए) के तहत बनाया गया है।
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  • Indias first grass conservatory ranikhet

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    2 एकड़ के क्षेत्र में फैले इस संरक्षण क्षेत्र में घास की 90 से भी अधिक प्रजातियां हैं। इन घासों को सुगंध, औषधीय, चारा, सजावटी, कृषि और धार्मिक उपयोगों के लिए जाना जाता है। यह 6 से 7 लाख की कीमत से हुआ तैयार हुआ है। इसको विकसित करने में 3 साल लग गए हैं। आपको बता दें कि पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में घास बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। मगर इसके संरक्षण की ओर कम प्रयास होने के कारण घास के मैदान विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना कर रहे हैं।

  • ये हैं खूबियां

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    उनका क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा रहा है। यह चिंताजनक है क्योंकि इससे कीड़ों, पक्षियों और उन पर निर्भर स्तनधारी जीवों के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है। वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि घास संरक्षण केंद्र को बनाने के पीछे का उद्देश्य घास की विभिन्न प्रजातियों के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना है। हम चाहते हैं कि घास के संरक्षण के लिए भी लोग आगे आएं। इस केंद्र का उद्देश्य उनके संरक्षण बढ़ावा देना और क्षेत्र में अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना है। बीते रविवार से यह जनता के लिए खोल दिया गया है।