उत्तराखंड टिहरी गढ़वालTehri Garhwal Martyr Gautam Lal Nagaland

उत्तराखंड शहीद गौतम की नम आंखों से विदाई, पिता ने कहा ‘दूसरे बेटे को भी सेना में भेजूंगा’

Martyr Gautam Lal के पिता रमेश लाल को बेटे के जाने का गम तो है, लेकिन बेटे की शहादत पर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। उन्होंने दूसरे बेटे को भी सेना में भेजने की इच्छा जताई है।

Tehri Garhwal Shaheed Gautam Lal: Tehri Garhwal Martyr Gautam Lal Nagaland
Image: Tehri Garhwal Martyr Gautam Lal Nagaland (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षा बलों की कार्रवाई के बाद हुई हिंसा उत्तराखंड को भी बड़ा जख्म दे गई। इस हिंसा में उत्तराखंड के जवान गौतम लाल शहीद हो गए। Martyr Gautam Lal सिर्फ 24 साल के थे। वो टिहरी जिले के हिसरियाखाल क्षेत्र की ग्राम पंचायत नौली के नौसिला तोक के रहने वाले थे। मंगलवार को पैतृक घाट लक्षमोली में उनको सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। इस मौके पर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि, सेना, जिला प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने उनको अंतिम सलामी दी। सेना के शहीद जवान गौतम लाल की अंतिम विदाई में सैकड़ों लोग उमड़े। शहीद गौतम के चचेरे व फुफेरे भाइयों ने गौतम को मुखाग्नि दी। इससे पूर्व शहीद की अंतिम यात्रा में जगह-जगह लोगों ने पुष्पवर्षा कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। शहीद गौतम के पिता रमेश लाल को बेटे के जाने का गम तो है, लेकिन बेटे की शहादत पर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। उन्होंने अपने दूसरे बेटे को भी सेना में भेजने की इच्छा जाहिर की है।
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  • Martyr Gautam Lal के पिता बोले बड़ी बात

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    सेना के अधिकारियों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह अपने दूसरे बेटे को भी सेना में भेजकर देश सेवा करना चाहते हैं। बता दें कि पैराशूट रेजीमेंट की 21वीं बटालियन के पैराशूट जवान गौतम लाल पिछले दिनों नागालैंड में हुई हिंसा के दौरान शहीद हो गए थे। सोमवार को उनका पार्थिव शरीर ऋषिकेश पहुंचा। मंगलवार को सुबह 6:30 बजे उनका पार्थिव शरीर सैनिक सम्मान के साथ एम्स से उनके पैतृक गांव टिहरी के नौली गांव (हिंसरियाखाल पट्टी) के लिए रवाना हुआ। जहां उन्हें अंतिम विदाई दी गई।

  • गांव के लिए प्रेरणास्रोत थे Martyr Gautam Lal

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    शहीद गौतम अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले सदस्य थे। ग्रामीणों ने बताया कि गौतम क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। वह जब भी छुट्टी में घर आते थे, तो गांव के नवयुवकों को सेना में जाकर देशसेवा के लिए प्रेरित करते थे।