उत्तराखंड चमोलीStory of Chamoli Banshi Narayan Temple

देवभूमि की अद्भुत कहानियां: साल भर बंद रहता है ये मंदिर, सिर्फ 1 दिन 12 घंटे के लिए खुलते हैं कपाट

पूरे साल बंद रहते हैं इस मंदिर के कपाट, साल में एक बार इस दिन सिर्फ 12 घंटे के लिए खोला जाता है मंदिर.. पढ़िए Story of Chamoli Banshi Narayan Temple

Chamoli Banshi Narayan Temple: Story of Chamoli Banshi Narayan Temple
Image: Story of Chamoli Banshi Narayan Temple (Source: Social Media)

चमोली: देवभूमि उत्तराखंड.... अपनी खूबसूरत वादियों के साथ ही यह अपने पौराणिक मंदिरों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां पर कई मंदिर ऐसे हैं जोकि कई सालों से अस्तित्व में हैं और उनका व्याख्यान पौराणिक कथाओं और इतिहास में भी देखने को मिलता है। आज हम आपको चमोली के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे एक बड़ी ही रोचक पौराणिक कहानी जुड़ी है और सदियों से मान्यता चली आ रही है।

Story of Chamoli Banshi Narayan Temple

चमोली का एक ऐसा मंदिर है जो कि साल में सिर्फ एक ही दिन खुलता है। इस मंदिर के नियम बेहद अलग हैं यह मंदिर केवल रक्षाबंधन के दिन खुलता है। हम बात कर रहे हैं बंशी नारायण मंदिर की जो कि चमोली जिले में स्थित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर पूरे साल बंद रहता है और सिर्फ 1 दिन रक्षाबंधन के दिन पूजा-अर्चना के लिए खोला जाता है जिसका इंतजार श्रद्धालु साल भर करते हैं। रक्षाबंधन के दिन यहां पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है और लोग दूरदराज के राज्यों से मंदिर में रक्षाबंधन के दिन दर्शन करने आते हैं। रक्षाबंधन वाले दिन इस मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ 1 दिन के लिए खोले जाते हैं। मतलब जब तक सूर्य की रोशनी है तब तक मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। उसके बाद जैसे ही सूर्यास्त होता है वैसे ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। जिसमें केवल 1 दिन मंदिर का कपाट खुलता है लेकिन उस दिन भी मंदिर को खोलने का समय निर्धारित होता है। ऐसे में रक्षाबंधन के दूर-दराज से श्रद्धालु मंदिर में पूजा अर्चना के लिए सुबह से पहुंचने लगते हैं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर यहां पर साल में केवल 1 दिन ही कपाट क्यों खुलते हैं। ऐसा इसलिए कि विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्ति के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर प्रकट हुए थे और उसके बाद से देव ऋषि नारद भगवान नारायण की यहां पर पूजा की जाती है। इस वजह से यहां पर भू लोक के मनुष्य को केवल 1 दिन के लिए ही पूजा का अधिकार मिलता है।

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वहीं एक अन्य कथा के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया था कि विष्णु जी उनके द्वारपाल बन जाएं। उनके आग्रह को स्वीकार करते हर विष्णु जी उनके द्वारपाल बन गए जब मां लक्ष्मी ने देखा कि विष्णु जी कई दिनों तक वापस नहीं लौटे तो उन्होंने नारद मुनि को विष्णु जी को ढूंढने को कहा। तब उन्होंने बताया कि विष्णु जी तो पाताल लोक में राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं। इसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को विष्णु भगवान की मुक्ति के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधने का उपाय दिया। कहा जाता है कि नारद मुनि के सुझाव पर माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा धागा बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करा दिया जिसके बाद वे इसी स्थान पर एकत्रित हुए। मान्यता है कि यहां पर वर्ष में 364 दिन नारद मुनि भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सावन मास की पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के साथ विष्णु जी को मुक्त कराने के लिए पाताल लोक जाते हैं जिस वजह से उसी दिन मंदिर में नारायण की पूजा होती है। बता दें कि रक्षाबंधन के दिन स्थानीय महिलाएं बंशी नारायण मंदिर आती हैं और भगवान को रक्षा सूत्र बांधती हैं। ऐसा माना जाता है कि बंशी नारायण मंदिर पांडवों के काल में अस्तित्व में आया था।