हल्द्वानी: उत्तराखंड में पलायन के बीच जनसांख्यिकीय बदलाव यानी डेमोग्राफिक चेंज ने राज्य सरकार की चिंता बढ़ा दी है।
Illegal Dargah Mazar in forests of Uttarakhand
हरिद्वार से लेकर सुदूर सीमावर्ती जिले पिथौरागढ़ तक जनसांख्यिकीय अनुपात में भारी बदलाव देखने को मिला है। समुदाय विशेष की आबादी बढ़ रही है, जिससे सियासी हलकों में भी हलचल है। कई जिलों से शासन ने इस बाबत जिला प्रशासन और पुलिस से खुफिया रिपोर्ट भी तलब की है। इस बीच एक चिंता बढ़ाने वाली खबर कुमाऊं क्षेत्र से आई है। पान्चजन्य की खबर के मुताबिक यहां बाजपुर से लेकर कालाढूंगी तक 20 किलोमीटर जंगल मार्ग में तीन-तीन दरगाह शरीफ के बोर्ड देखे जा सकते हैं। राज्य के रिजर्व फॉरेस्ट एरिया में वन कर्मचारी किसी को नहीं जाने देते, ऐसे में यहां सैकड़ों की संख्या में मजारें कैसे बन गईं, ये सवाल हर किसी को परेशान कर रहा है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अलावा राजाजी टाइगर रिजर्व में भी दर्जनों की संख्या में मजारें बनी हुई हैं। जहां समुदाय विशेष के लोग काबिज हैं। ये दरगाहें संदिग्ध किस्म के लोगों की शरणस्थली और नशाखोरी का अड्डा बन गई हैं। आग पढ़िए
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हल्द्वानी में गौला, टनकपुर में शारदा, रामनगर में कोसी नदी किनारे वन विभाग की जमीन पर हजारों की संख्या में मुस्लिम लेबर ने अपनी झोपड़ियां बना ली हैं। यहां भी 3-4 दरगाह और मजारें हैं। दरगाह-मजार के बहाने सरकारी वन भूमि पर अवैध कब्जा किया जा रहा है। जानकार बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य बनने तक यहां नाममात्र की मुस्लिम आबादी हुआ करती थी, लेकिन साल 2010 और 2020 के कालखंड में यहां जंगलों के भीतर अचानक मजारें नजर आने लगीं। अब यहां उर्स मनाया जाता है, लाउडस्पीकर के शोर के साथ कव्वालियां गाई जाती हैं, लेकिन वनकर्मी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। हरिद्वार के मोतीचूर, श्यामपुर, कॉर्बेट, कालागढ़ ,बिजरानी, नंधौर, सुरई फोरेस्ट डिवीजन और यहां तक कि टिहरी झील के किनारे भी मजार बनाई गई है। इस मामले में मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक डॉ. पराग मधुकर धकाते का कहना है कि हमने सभी डिवीजन से रिपोर्ट मंगवायी है कि उनके क्षेत्र में कौन-कौन से धार्मिक स्थल हैं ? कब-कब ये स्थापित हुए हैं? इस बारे में जानकारी एकत्र करवायी जा रही है। रिपोर्ट मिलने के बाद जरूरी कदम उठाए जाएंगे।