उत्तराखंड नैनीतालUttarakhand Fatehpur Range Tiger in search of tigress

उत्तराखंड में ‘मिस्टर इंडिया’ बना बाघ, 7 लोगों को मार डाला, 40 लाख खर्च..अब तक नहीं मिला

फतेहपुर रेंज में सात लोगों का शिकार करने वाले बाघ-बाघिन की खोज अब भी जारी, अब तक 40 लाख खर्च

Fatehpur Range Tiger : Uttarakhand Fatehpur Range Tiger in search of tigress
Image: Uttarakhand Fatehpur Range Tiger in search of tigress (Source: Social Media)

नैनीताल: फतेहपुर रेंज के जंगल में सात लोगों को शिकार बनाने वाली बाघ व बाघिन को अबतक वन विभाग ढूंढ नहीं पाया है। उनकी तलाश में वक्त और पैसा दोनों खर्च हो रहा है।

Fatehpur Range Tiger in search of tigress

अबतक इनको पकड़ने के लिए 40 लाख ख़र्च हो चुके हैं। जनवरी से वन विभाग ने यहां ट्रैंकुलाइज अभियान शुरू कर रखा है। पिछले साढ़े नौ महीने में करीब 40 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। पिछले साल 29 दिसंबर को फतेहपुर रेंज के जंगल में इंसानी मौत की पहली घटना से सनसनी मच गई थी। जिसके बाद लगातार हमले हुए हैं। जून तक सात लोगों की जान जा चुकी थी। हमले के तरीके और घटनास्थल के आसपास मिले साक्ष्यों से पता चला कि अधिकांश घटनाओं को बाघ ने अंजाम दिया है। तब जनवरी से ही वन विभाग बाघ व बाघिन को पकडऩे में जुटा था। बाघ को नरभक्षी घोषित कर मारा नहीं जा सकता था। इसलिए ट्रैंकुलाइज अभियान शुरू किया गया। इसके अलावा कई डिवीजनों के वनकर्मी बुला आबादी सीमा पर तैनात किया गया। लोगों को जंगलों की तरफ न जाने की हिदायत दी गई। विभाग के अनुसार समय के हिसाब से यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा अभियान है। पैसे खर्च होने के लिहाज से दूसरा। इससे पूर्व 2016 में रामनगर में एक बाघिन को नरभक्षी घोषित कर ढेर किया गया था। देश भर से शिकारी-विशेषज्ञ बुलाने के साथ ही हेलीकाप्टर तक की मदद ली गई। वह अभियान 44 दिन तक चला था और उस अभियान में 80 लाख रुपये खर्च हुए थे।

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वन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि जंगल में एक बाघ का अधिकार क्षेत्र 20-25 वर्ग किमी होता है। इस क्षेत्र को बाघ का दायरा कहते हैं। लेकिन फतेहपुर रेंज में ट्रेप कैमरों में दायरे की कहानी अजीबोगरीब मोड़ ले चुकी है। यहां दस किमी के दायरे में चार बाघों का मूवमेंट लगातार बना हुआ है। यानी यह बाघ दायरे से बाहर घूमने लगे हैं। वहीं म जंगल में गश्त को लेकर 13 मार्च से कार्बेट से यहां दो हाथी आए हुए हैं। हाथियों के अलावा इनके महावत का खर्चा उठाना पड़ रहा है। बाघ की निगरानी को जंगल में मचान बने हए हैं। सात पिंजरों में हर तीसरे दिन मांस बदलना पड़ता है।गश्ती टीम में वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त दीप चंद्र आर्य ने बताया कि बाघों को पकड़ने का अभियान अभी जारी रहेगा। जंगल वाले क्षेत्रों में लोगों की आवाजाही को रोकने के बाद फिलहाल जून के बाद से कोई घटना नहीं हुई।