उत्तराखंड हरिद्वारLife imprisonment for 9 leopards in Haridwar Chidiyapur

हैरत है मगर ये ही सच है, उत्तराखंड में ‘उम्रकैद’ की सजा भुगत रहे हैं 9 गुलदार!

हरिद्वार के समीप चिड़ियापुर रेस्क्यू और पुनर्वास सेंटर में ऐसे ही नौ गुलदार हैं, जो ताउम्र वहीं रहेंगे। पढ़िए पूरी खबर

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Image: Life imprisonment for 9 leopards in Haridwar Chidiyapur (Source: Social Media)

हरिद्वार: यह खबर पढ़कर शायद आपको भी अटपटा सा लगे। उत्तराखंड में अब इंसानों को ही नहीं बल्कि जानवरों को भी उम्रकैद दी जा रही है।

Life imprisonment for 9 leopards in Chidiyapur

हरिद्वार के समीप चिड़ियापुर रेस्क्यू और पुनर्वास सेंटर में ऐसे ही नौ गुलदार हैं, जो ताउम्र वहीं रहेंगे। जी हां, उनकी आगे की उम्र भी यहीं गुजरेगी। इनको वहां पिंजरों में कैद रखा गया है। अब ना तो वे अपने नेचुरल हैबिटेट में रह जाएंगे और न ही पहले की तरह आजादी से घूम सकेंगे। प्रदेश के विभिन्न इलाकों से पकड़े गए इन गुलदारों को रूबी, रॉकी, दारा, मुन्ना, जाट, मोना, गब्बर जैसे नामों से जाना जाता है। इनको वहां पर चिकन, मटन और अन्य तरह का मांस भी खाने को दिया जाता है और कुछ देर के लिए बाड़े में भी छोड़ा जाता है, लेकिन फिर पिंजरे में डाल दिया जाता है। आप सोच रहे होंगे कि ऐसी क्या मजबूरी आ गई कि वन विभाग को इनको उम्रकैद की सजा देनी पड़ी। वन विभाग का तर्क है कि इनमें से कइयों के दांत टूटे हैं। कुछ की आंख में चोट है। कुछ के हाथ पैर में चोट है। इस कारण वे अब जंगल में सर्वाइव नहीं कर सकते। वहीं इनमें से कुछ आदमखोर और खूंखार बन गए हैं तो उनको जंगल में नहीं छोड़ सकते। ऐसे में इनका जंगल में जाना उनकी खुद की या दूसरों की जान के लिए बेहद खतरनाक है। ऐसे में इनको यहीं रखकर उनका पालन पोषण किया जा रहा है। आगे पढ़िए

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हफ्ते में इनको एक दिन चिकन, एक दिन मटन और एक दिन मोटा मांस खाने को दिया जाता है। लेकिन, मंगलवार को नौ के नौ कैदियों को उपवास रखना होता है। यानि की मंगलवार को इन्हें खाने को कुछ नहीं दिया जाता है। उत्तराखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ समीर सिन्हा कहते हैं कि यह वाइल्ड लाइफ का पुर्नवास सेंटर है। यहां पर अलग-अलग घटनाओं में घायल हुए जानवरों को उपचार के लिए लाया जाता है। जहां, उपचार के बाद उनको फिर उनके नेचुरल हैबीटेट में छोड़ दिया जाता है। हालांकि, गुलदार के मामले में चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन का कहना है कि यह मैन ईटर हो चुके हैं इसलिए इन गुलदारों को यहां पिंजरे में कैद कर दिया जाता है और फिर उनकी रिहाई नामुमकिन हो जाती है। लंबे समय तक ह्यूमन टच और पिंजरे में रहने के कारण ये गुलदार मानसिक तनाव में कई अधिक खूंखार हो गए हैं। अब इन्हें जंगल में छोड़ा जाना संभव नहीं है।