उत्तराखंड हल्द्वानीPlastic Surgeon Dr Himanshu Saxena Left Job

कुमाऊं के सरकारी अस्पतालों में बचा था एकमात्र प्लास्टिक सर्जन, उसने भी नौकरी छोड़ दी!

उत्तराखंड में बेहाल है स्वास्थ्य सुविधाएं, सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी के एकमात्र प्लास्टिक सर्जन ने भी छोड़ी नौकरी

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Image: Plastic Surgeon Dr Himanshu Saxena Left Job (Source: Social Media)

हल्द्वानी: उत्तराखंड में इस समय सबसे चिंताजनक सेक्टर हेल्थ सेक्टर है जहां पर एक परसेंट भी विकास नहीं हुआ है बल्कि दिन-प्रतिदिन वह अंधकार की ओर जा रहा है। पहाड़ों पर सुख सुविधाएं नहीं हैं। लोगों को अस्पताल के लिए घंटो यात्रा करके जाना पड़ता है। बेसिक उपचार के लिए भी उत्तराखंड के अस्पतालों में सुविधा नहीं है। सरकार भले ही स्वास्थ्य सुविधाएं दुरुस्त करने का दावा कर रही हो, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही है।

Plastic Surgeon Dr. Himanshu Saxena Left Job

कुमाऊं के सरकारी अस्पतालों में एकमात्र प्लास्टिक सर्जन डा. हिमांशु सक्सेना ने भी नौकरी छोड़ दी है। इससे यह पता चलता है कि उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों के ऊपर भी कितना ज्यादा वर्क प्रेशर है। एक डॉक्टर को रोजाना कई मरीज देखने पड़ते हैं। इससे न केवल उनकी जिंदगी तनावग्रस्त हो जाती है बल्कि इससे काम पर भी बहुत फर्क पड़ता है। डॉक्टर सुशीला तिवारी अस्पताल के इकलौते प्लास्टिक सर्जन के द्वारा नौकरी छोड़ने के बाद कालेज प्रशासन के पास वैकल्पिक व्यवस्था की भी सुविधा नहीं है। चर्चा है कि काम का दबाव और अब तक स्थायी नियुक्ति न होने के चलते प्लास्टिक सर्जन डा. हिमांशु सक्सेना ने अपना कांट्रेक्ट रिन्यूवल ही नहीं कराया। एसटीएच में प्लास्टिक सर्जन 10 वर्ष से कार्यरत हैं। वर्ष 2016 से एसोसिएट प्रोफेसर हैं, लेकिन संविदा पर ही कार्यरत हैं।

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इस बीच एक और प्लास्टिक सर्जन ने ज्वाइन किया था, लेकिन वह छह महीने भी नहीं टिके। इतने वर्षों से अकेले ही डा. सक्सेना सेवाएं दे रहे हैं।अस्पताल में मरीजों का बहुत अधिक दबाव रहता है। वह पूरे कुमाऊं के लोगों को चेक करते थे। पूरे कुमाऊं से रेफर होकर मरीज पहुंचते हैं। इसमें जले हुए मरीजों की संख्या अधिक रहती है। अब अचानक डाक्टर के न होने से संकट पैदा हो गया है। प्लास्टिक सर्जरी विभाग के बर्न यूनिट में ही प्रतिदिन 20 से 30 मरीज भर्ती रहते हैं। सप्ताह में दो दिन ओपीडी रहती है। एक दिन में 40 से 60 मरीज उपचार को पहुंचते हैं। ऐसा नहीं कि पहली बार प्लास्टिक सर्जन ने नौकरी छोड़ दी है। पहले भी सरकार और शासन स्तर पर सहयोग नहीं मिलने की वजह से कई सुपरस्पेशलिस्ट संस्थान छोड़ चुके हैं। इसमें न्यूरोसर्जन, कार्डियोलाजिस्ट भी शामिल हैं। इस समय अस्पताल 40 प्रतिशत डाक्टरों की कमी में संचालित हो रहा है।