उत्तराखंड देहरादूनNFHS report of average height of children in Uttarakhand

उत्तराखंड के बच्चों की हाइट को लेकर बड़ा खुलासा, NFHS की रिसर्च रिपोर्ट में आई खुशखबरी

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-एनएफएचएस की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच साल में राज्य के बच्चों की सेहत में सुधार हुआ है। आठ प्रतिशत बच्चों में बौनेपन (औसत से कम ऊंचाई) की समस्या कम हुई है।

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Image: NFHS report of average height of children in Uttarakhand (Source: Social Media)

देहरादून: उत्तराखंड में बच्चों की हाइट कम होना बेहद आम है, और इससे जुड़ी समस्याएं भी । हाइट कम हो तो आत्मविश्वास कम होता है। यहां के युवा सेना भर्ती के लिए कैसे जुनूनी रहते हैं, ये तो आप जानते ही हैं। लेकिन कई बार औसत से कम ऊंचाई के चलते वो भर्ती से बाहर हो जाते हैं।

NFHS report of average height of Uttarakhand children

उम्मीद है भविष्य में यहां के युवाओं को कम ऊंचाई संबंधी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में छोटे बच्चों की लंबाई में पहली बार बड़ा सुधार हुआ है। उनकी शारीरिक संरचना मे बड़ा बदलाव हुआ है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-एनएफएचएस (NFHS) पांच की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच साल में राज्य के बच्चों की सेहत में सुधार हुआ है और आठ प्रतिशत बच्चों में बौनेपन (औसत से कम ऊंचाई) की समस्या कम हुई है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में पांच साल तक के 25 प्रतिशत बच्चे औसत से कम लंबे हैं। जबकि पिछली नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट में यह आंकड़ा 33 प्रतिशत था।

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इस तरह राज्य में न केवल बच्चों की लंबाई बढ़ी है, बल्कि उनके वजन में भी इजाफा हो रहा है। राज्य गठन के बाद पहली बार बच्चों की लंबाई के मामलों में सुधार आया है। बाल रोग विशेषज्ञ और पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. डीएस रावत कहते हैं कि पांच साल के बच्चे की औसत लंबाई 105 से 110 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए। जबकि उसका वजन 18 से 20 किलो के बीच होना चाहिए। बच्चों की सेहत सुधरने के पीछे सबसे बड़ा कारण न्यूट्रीशन और टीकाकरण है। गर्भवती महिला और नवजात पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। राज्य में बाल स्वास्थ्य के कार्यक्रम देख रहे डॉ. कुलदीप मर्तोलिया ने बताया कि बच्चों की लंबाई के मामले में राज्य में पहली बार सुधार आया है। उत्तराखंड की तुलना पड़ोसी राज्य हिमाचल से की जाए तो अपनी स्थिति काफी बेहतर है। अपने यहां 25 फीसदी बच्चे कम लंबाई की समस्या से जूझ रहे हैं, जबकि पड़ोसी राज्य में ऐसे बच्चों की संख्या 30 प्रतिशत है।

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