उत्तराखंड देहरादूनUttarakhand Rishikesh-Karnprayag Rail Project Tunnel

उत्तराखंड बनेगा सबसे ज्यादा सुरंगों वाला पहाड़ी राज्य, न जाने कितने गांवों में दिखेंगी दरारें?

वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ों में जो परियोजनाएं चल रही हैं, हो सकता है वह बेहद जरूरी हों, लेकिन एक बात का ध्यान रखना होगा कि यह सब होने के बाद अगर कुछ ना रहा तो क्या होगा?

Rishikesh Karnprayag rail line project: Uttarakhand Rishikesh-Karnprayag Rail Project Tunnel
Image: Uttarakhand Rishikesh-Karnprayag Rail Project Tunnel (Source: Social Media)

देहरादून: उत्तराखंड में विकास के नाम पर चल रही परियोजनाएं हमें किस तरह विनाश की तरफ ले जा रही हैं, ये जोशीमठ की हालत देखकर समझा जा सकता है।

Uttarakhand Rishikesh-Karnprayag Rail Project

ऑलवेदर रोड हो, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना या जलविद्युत परियोजनाएं...इनके लिए पहाड़ों का सीना चीरकर सुरंगें बनाई जा रही हैं, जो कि हर किसी को टेंशन दे रही हैं। अगले 10 साल में उत्तराखंड देश में सर्वाधिक रेल रोड सुरंग वाला प्रदेश होगा। फिलहाल यहां 18 सुरंग हैं, आगे 66 सुरंग और बनाई जानी हैं। इससे कनेक्टिविटी बढ़ेगी, लेकिन भूकंप और लैंड स्लाइड का खतरा भी बढ़ेगा। जोशीमठ का हाल सब देख ही रहे हैं, यहां जल विद्युत समेत अन्य परियोजनाओं के लिए पहाड़ ऐसे ही छलनी किए जाते रहे तो हालात बेहद खतरनाक हो जाएंगे। प्रदेश में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग का काम भी जोरों पर है। कहने को रेल मार्ग लोगों की सहूलियत के लिए बन रहा है, लेकिन आगे चलकर ये भी सहूलियत की जगह टेंशन की वजह बन सकता है।

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पहाड़ों के भीतर बन रही सुरंग और दुर्गम पहाड़ों के ऊपर बन रहे बहुमंजिला घरों और होटल का दबाव इतना बढ़ गया है, जिसे हिमालय के पर्वत भी सहन नहीं कर पा रहे। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अगले पांच सालों में उत्तराखंड देश का पहला ऐसा पर्वतीय राज्य होगा जहां पर सबसे अधिक टनल होंगी। यह टनल उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को बेहतर तरीके से जानने वाले और वैज्ञानिकों के लिए टेंशन बन रही हैं। वैज्ञानिक चिंतित हैं। उनका कहना है कि जिस तरह से पर्वतों को खोदकर उनमें निर्माण हो रहे हैं, वह भविष्य के लिए ठीक नहीं है। उत्तराखंड में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग में ऋषिकेश से लेकर कर्णप्रयाग तक लगभग 12 स्टेशन बनाए जा रहे हैं। इसके लिए 17 सुरंगें बनाई जाएंगी। 126 किलोमीटर का सफर तय करने वाली ट्रेन 70 प्रतिशत तक पहाड़ों के नीचे से होती हुई अपनी मंजिल पर पहुंचा करेगी। ऐसे में पहाड़ों के भीतरी हिस्से में तेजी से काम हो रहा है। सरकारें वैज्ञानिक पहलू को ध्यान में रखकर काम कराने की बात जरूर कह रही हैं, लेकिन टेंशन बनी हुई है।

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प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और टिहरी बांध आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा भी परियोजना को बेहद घातक बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में सड़क और रेल मार्ग की आपाधापी में जिस तरह के काम किए जा रहे हैं, वह अदृश्य खतरा है। पहाड़ों में अंधाधुंध विस्फोट की जगह दूसरे उपाय भी अपनाए जा सकते हैं। मलेथा में 600 साल पहले माधो सिंह भंडारी ने जो सुरंग बनाई थी, उसमें आज तक किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आई, वो इसलिए क्योंकि इसके लिए किसी तरह का विस्फोट नहीं किया गया था, पूरी सुरंग मैनुअली बनाई गई थी। भूवैज्ञानिक बीडी जोशी भी यही मानते हैं। वो कहते हैं कि पहाड़ों में जो परियोजनाएं चल रही हैं, हो सकता है कि वह बेहद जरूरी हों, लेकिन एक बात का ध्यान रखना होगा कि यह सब होने के बाद अगर कुछ ना रहा तो क्या होगा। बता दें कि उत्तराखंड में हाल में देहरादून-दिल्ली मार्ग पर एक बड़ी टनल का निर्माण किया गया है। टिहरी में भी सुरंग बनाई गई है, जिसके बाद यहां भी मकानों में दरार पड़ने की खबर आई थी। उत्तराखंड में रेल मार्ग के लिए 17 सुरंगें बनाई जा रही हैं। दूसरी कई परियोजनाओं का काम भी जारी है।