चमोली: किसने सोचा था कि आपदा एक दिन भगवान बदरीनाथ धाम के द्वार तक पहुंच जाएगी, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो रहा है और हम सब इसके गवाह हैं। जोशीमठ की आपदा को कोई मानव निर्मित बता रहा है तो कोई प्राकृतिक...इस बीच पौराणिक किंवदंतियों की भी चर्चा हो रही है। पुरानी मान्यता है कि एक समय आएगा जब भगवान बदरीनाथ अपने मूलस्थान से अंतर्ध्यान हो जाएंगे।
Badrinath will appear in Bhavishya Badri myth
उस वक्त जोशीमठ से आगे अलकनंदा नदी के दायें और बायें किनारों पर तीव्र ढाल बनाते हुए जय, विजय नाम के ऊंचे पहाड़ आपस में मिल जाएंगे। भगवान बदरीनाथ के मूल स्थान से अंतर्ध्यान हो जाने के बाद वो सुबई गांव क्षेत्र में अवतरित होंगे।एक मान्यता जोशीमठ के भगवान नृसिंह की शालिग्राम पत्थर की प्रतिमा से भी जुड़ी है। इस प्रतिमा की बायीं भुजा कलाई के पास से पतली होती जा रही है। कहते हैं जिस दिन यह भुजा टूटकर गिर जाएगी, उस दिन जय-विजय पर्वत आपस में मिल जाएंगे। इससे बदरीनाथ जाने वाला मार्ग बंद हो जाएगा। ये तो हुई पौराणिक कहानियों की बात, लेकिन ये मान्यताएं विज्ञान की कसौटी पर कितनी खरी उतरती हैं, ये परखने के लिए भूविज्ञानी व उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के सेवानिवृत हिमनद विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल चमोली जिले के सुबई गांव पहुंचे। वहां चार दिन तक सर्वेक्षण किया। इस दौरान कई हैरान करने वाली बातें पता चलीं। कहते हैं भविष्य बदरी के मंदिर में भगवान विष्णु की पद्मासन की मुद्रा वाली प्रतिमा भूसतह से धीरे-धीरे ऊपर उठ रही है।
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प्रतिमा के भौमिकीय सर्वे के दौरान ये बात सच साबित हुई। वैज्ञानिकों का जवाब ये है कि प्रतिमा का मध्य भाग छह इंच ऊपर है, इसकी वजह यह है कि उपरोक्त स्थल का तल सामान्य स्थिति के कुछ नीचे है। क्योंकि, जब मिट्टी के कण पानी के संपर्क में आते हैं तो वह नीचे की तरफ खिसकते हैं। भूविज्ञान की भाषा में इसे मृदा विसर्पण (साइल क्रीप) कहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक भूविज्ञानिक घटना है, इसलिए इस प्रकटन के लिए भगवान विष्णु की शिला का अपने स्थान पर ऊपर उठने के पीछे की अवधारणा को सही नहीं माना जा सकता। भगवान बदरीनाथ के मूल स्थान से अंतर्ध्यान होने और भविष्य बदरी Bhavishya Badri में प्रकट होने की मान्यता अविज्ञानिक लगती है। अपने तर्क देते हुए विज्ञानियों ने ये भी साफ किया है कि वो किसी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते।