उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालUttarakhand Rifleman Jaswant Singh Rawat Brewery Story

उत्तराखंड का महावीर, 300 सैनिकों को मारकर हुआ था शहीद, आज भी सरहद पर तैनात है

माना जाता है कि राइफलमैन जसवंत सिंह आज भी सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। जसवंत और उनके साथियों ने अपने प्राण देकर अरुणाचल को चीन के हाथों में जाने से बचाया था।

Shaheed jaswant singh rawat : Uttarakhand Rifleman Jaswant Singh Rawat Brewery Story
Image: Uttarakhand Rifleman Jaswant Singh Rawat Brewery Story (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: राइफलमैन जसवंत सिंह....देश का वो जांबाज सपूत जिसने शरीर छोड़ दिया, लेकिन देश की सेवा करना नहीं छोड़ा।

Rifleman Jaswant Singh Rawat Brewery Story

साल 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भारतीय सेना के जांबाज सिपाही जसवंत सिंह ने 72 घंटे तक भूखे-प्यासे रहकर चीनी सेना को रोके रखा। उन्होंने चीन के 3 सौ सैनिकों को अकेले ही ढेर कर दिया था। जसवंत सिंह की वीरता को दुश्मन देश ने भी सम्मान दिया। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को 1962 के युद्ध के दौरान उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जसवंत सिंह रावत भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं, जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिला था। वो पहले नायक फिर कैप्टन और उसके बाद मेजर जनरल बने। इस दौरान उनके घरवालों को पूरी सैलरी भी पहुंचाई गई। माना जाता है कि वह आज भी सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल में एक जगह है बादयूं, यहीं पर 19 अगस्त 1941 को जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ था। 19 अगस्त 1960 को जसवंत सेना में बतौर राइफल मैन शामिल हुए। 14 सितंबर, 1961 को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई। आगे पढ़िए

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इसके एक साल बाद ही यानी 17 नवंबर 1962 को चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने की नीयत से हमला कर दिया। इस दौरान गढ़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी ने मजबूती से दुश्मनों का सामना किया। चीनी सेना का पलड़ा भारी पड़ने लगा तो भारतीय सेना ने गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया, लेकिन इसमें शामिल जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाई नहीं लौटे। ये तीनों सैनिक चीनी सैनिकों को मारकर उनसे मशीनगन छीन लाए। इस दौरान गोलाबारी में त्रिलोकी और गोपाल मारे गए, लेकिन जसवंत को दुश्मनों ने घेर लिया और उनका सिर काटकर ले गए। जसवंत सिंह और उनके साथियों ने अपने प्राण देकर अरुणाचल को चीन के हाथों में जाने से बचा लिया। जल्द ही उत्तराखंड के लैंसडाउन शहर को हीरो ऑफ द नेफा महावीर चक्र विजेता शहीद राइफलमैन बाबा जसवंत सिंह रावत के नाम से जाना जाएगा। छावनी परिषद ने शहर का नाम जसवंतगढ़ करने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा है। वर्तमान में लैंसडाउन शहर को ब्रिटिश राजनेता रहे लार्ड लैंसडाउन के नाम से जाना जाता है। उन्होंने 1888 से 1894 तक भारत के वायसराय के रूप में काम किया था। 21 सितंबर 1890 को वायसराय के नाम पर उत्तराखंड के कालूडांडा का नाम बदलकर लैंसडाउन कर दिया गया था, अब इस शहर को जसवंतगढ़ के नाम से जाना जाएगा।