उत्तराखंड चम्पावतChampawat Devidhura Bagwal In Rakshabandhan

उत्तराखंड: राखी के दिन आमने सामने होंगे रणबांकुरे, देवी को खुश करने के लिए होगा अनोखा युद्ध

रक्षाबंधन के दिन उत्तराखंड के इस क्षेत्र में खेला जाता है पत्थर का युध्द, एक आदमी के बराबर खून गिरने तक चलता है युद्ध, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कहानी

Champawat Devidhura Bagwal: Champawat Devidhura Bagwal In Rakshabandhan
Image: Champawat Devidhura Bagwal In Rakshabandhan (Source: Social Media)

चम्पावत: रक्षाबंधन का पावन त्यौहार बस आने ही वाला है। इस मौके पर जहां हर कोई भाई बहन के पवित्र प्यार का जश्न मनाएगा तो वहीं उत्तराखंड का एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां उस दिन अछ्वुत बग्वाल यानी कि फल और फूलों से युद्ध खेला जाएगा।

Champawat Devidhura Bagwal story

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कभी इस बग्वाल में पत्थर से युद्ध खेला जाता था। जी हां, उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में चंपावत जनपद के देवीधुरा स्थित ऐतिहासिक खोलीखाड़ मैदान में यह खेल खेला जाएगा। यहां कभी बकायदा पत्थर युद्ध खेला जाता था। अब ऐसा क्यों है, यह भी जानते हैं। लोग अपनी आराध्या देवी को मनाने के लिए यह खेल खेलते हैं। मान्यता है कि बग्वाल तब तक खेली जाती है जब तक एक आदमी के बराबर खून नहीं बह जाता है। दरअसल देवीधुरा का ऐतिहासिक बग्वाल मेला असाड़ी कौतिक के नाम से भी काफ़ी प्रसिद्ध है। यहां हर साल रक्षा बंधन के मौके पर बग्वाल खेली जाती है। माना जाता है कि देवीधूरा में बग्वाल का यह खेल पौराणिक काल से खेला जा रहा है। बताया जाता है कि पौराणिक काल में चार खामों के लोगों द्वारा अपनी आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी। ऐसे में मां बाराही को प्रसन्न करने के लिए चारों खामों के लोगों में से हर साल एक नर बलि दी जाती थी। आगे पढ़िए

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एक बार एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी। परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे। माना जाता है कि महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिए अपनी बलि दी थी। जिसके बाद मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिये और आशीर्वाद दिया। माना जाता है कि देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिये। तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई। बग्वाल बाराही मंदिर के प्रांगण खोलीखांण में खेली जाती है। इसे चारों खामों के युवक और बुजुर्ग मिलकर खेलते हैं। रक्षाबंधन के दिन सुबह रणबांकुरे सबसे पहले सज-धजकर मंदिर परिसर में आते हैं। देवी की आराधना के साथ शुरू हो जाता है अछ्वुत खेल बग्वाल। बाराही मंदिर में एक ओर मां की आराधना होती है दूसरी ओर रणबांकुरे बग्वाल खेलते हैं। कुछ साल पहले तक यहां दोनों ओर के रणबांकुरे पूरी ताकत व असीमित संख्या में पत्थर तब तक चलाते थे, जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए। बताया जाता है कि पुजारी बग्वाल को रोकने का आदेश जब तक जारी नहीं करते तब तक खेल जारी रहता था। अब यहां पत्थरों की बग्वाल नहीं खेली जाती। इसे बदलकर अब फल और फूलों की बग्वाल का रूप दिया गया है।