उत्तराखंड उत्तरकाशीUttarakhand Dodital birthplace of Lord Ganesha

उत्तराखंड में यहां हुआ था भगवान गणेश का जन्म, आज भी मां अन्नपूर्णा संग होती है पूजा

यह विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहां गणपति और मां अन्नपूर्णा मंदिर के अंदर विराजमान हैं, जबकि शिव मंदिर के बाहर हैं।

Dodital Lord Ganesha Birth: Uttarakhand Dodital birthplace of Lord Ganesha
Image: Uttarakhand Dodital birthplace of Lord Ganesha (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: भगवान श्री गणेश लोकमंगल के देवता हैं। उनकी कृपा से संपदा और समृद्धि का कभी अभाव नहीं रहता। आज देशभर में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है।

Dodital birthplace of Lord Ganesha

इस मौके पर हम आपको उत्तराखंड के उस स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मां अन्नपूर्णा ने गणेश को जन्म दिया था। उत्तरकाशी में स्थित उस जगह का नाम डोडीताल है, जिसे भगवान गणेश की जन्मस्थली कहा जाता है। स्थानीय बोली में भगवान गणेश को यहां डोडीराजा कहा जाता है, जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश हैं। डोडीताल जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर स्थित है। यह जगह समुद्रतल से करीब 3100 मीटर की ऊंचाई पर है। डोडीताल में स्थित गणेश मंदिर देश के 10 प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में से एक है। आमतौर पर हर शिव मंदिर में भगवान शिव, मां पार्वती और गणेश एक ही जगह विराजमान होते हैं, लेकिन यह विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहां गणपति और मां अन्नपूर्णा मंदिर के अंदर विराजमान हैं, जबकि शिव मंदिर के बाहर हैं।

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डोडीताल में करीब एक किमी में फैली प्राकृतिक झील है। झील के एक किनारे पर मां अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर है। पुजारी संतोष खंडूड़ी कहते हैं कि इसी स्थान पर माता अन्नपूर्णा ने हल्दी के उबटन से गणेश भगवान की उत्पति की थी। इसके बाद वह स्नान के लिए चली गईं और बाहर गणेश को द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया। जब शिव आए तो गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया। दोनों के बीच युद्ध होने पर शिव ने त्रिशूल से भगवान गणेश का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। जब शिव का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने गरुड़ को अपने बच्चे की तरफ पीठ कर सो रही माता के बच्चे के सिर को लाने के आदेश दिए। तब गरुड़ भगवान गज शिशु का शीश ले आए। शिव ने भगवान गणेश को गज शीश लगाकर पुनर्जीवित कर दिया। स्थानीय बोली में गणेश को यहां डोडीराजा कहा जाता है। यह जगह असी गंगा केलसू क्षेत्र में है। केलसू को ही स्थानीय लोग शिव का कैलाश बताते हैं।