देहरादून: प्रदेश सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024 विधेयक पेश कर दिया। इस तरह उत्तराखंड देश की आजादी के बाद समान नागरिक संहिता की दिशा में पहल करने वाला पहला राज्य बन गया है।
Uniform civil code in uttarakhand
यहां हम आपको विधेयक की मुख्य बातें बताएंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सदन में पेश विधेयक में 392 धाराएं हैं जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 है। विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। कुल 192 पृष्ठों के विधेयक को चार खंडों में विभाजित किया गया है। विधेयक में महिलाओं को समान अधिकार का प्राविधान है। संपत्ति में महिलाओं के समान अधिकार का प्राविधान है। अनुसूचित जनजातियों और भारत के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
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विधेयक का पहला खंड विवाह और विवाह विच्छेद पर केंद्रित है। इसमें साफ किया गया है कि बहु विवाह और बाल विवाह अमान्य होंगे। संहिता में विवाह और विवाह विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा। पंजीकरण न कराने की स्थिति में भी विवाह मान्य रहेगा, लेकिन पंजीकरण न कराने पर दंड दिया जाएगा। यह दंड अधिकतम तीन माह तक का कारावास और अधिकतम 25 हजार तक का जुर्माना होगा। विवाह विच्छेद विधिक प्रक्रिया से ही हो सकेगा, इस व्यवस्था से एकतरफा मनमाने तलाक की प्रथा पर रोक लग जाएगी। पुनर्विवाह के लिए यदि कोई तय नियम का उल्लंघन करता है तो वह एक लाख रुपये तक का जुर्माना व छह माह तक के कारावास का भागी होगा। दूसरे खंड में उत्तराधिकार के विषय में उल्लेख है। इसके अनुसार सभी जीवित बच्चे, पुत्र अथवा पुत्री संपत्ति में बराबर के अधिकारी होंगे।
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विधेयक का तीसरा खंड लिवइन रिलेशनशिप पर केंद्रित है, इसमें लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। इस अवधि में पैदा होने वाला बच्चा वैध संतान माना जाएगा। उसे वह सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो वैध संतान को प्राप्त होते हैं। युगल में से किसी एक पक्ष के नाबालिग होने अथवा विवाहित होने की स्थिति में लिव इन की अनुमति नहीं दी जाएगी। लिव इन में पंजीकरण न कराने पर अधिकतम तीन माह का कारावास और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान है। विधेयक के पारित होने के बाद इसे राजभवन और फिर राष्ट्रपति भवन को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। इस विधेयक के कानून बनने पर समाज में व्याप्त कुरीतियां व कुप्रथाएं अपराध की श्रेणी में आएंगी और इन पर रोक लगेगी। इनमें बहु विवाह, बाल विवाह, तलाक, इद्दत, हलाला जैसी प्रथाएं शामिल हैं। संहिता के लागू होने से किसी की धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।