उत्तराखंड टिहरी गढ़वालBadrinath Dham Rawal Pattabhishek Completed After Five Decades

बदरीनाथ: 50 साल बाद शुरू हुई यह परंपरा, महाराजा मनुजयेंद्र शाह ने किया रावल का पट्टाभिषेक

12 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खुल रहे हैं। इससे पहले बदरीनाथ धाम से संबंधित पांच दशक पहले समाप्त हुई रावल पट्टाभिषेक की महत्वपूर्ण परंपरा फिर से आरंभ की गई है।

Badrinath Dham : Badrinath Dham Rawal Pattabhishek Completed After Five Decades
Image: Badrinath Dham Rawal Pattabhishek Completed After Five Decades (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: चार धाम यात्रा 10 मई से शुरू हो रही है जिसमें गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट श्रद्धालुओं के लिए 10 मई को खोले जायेंगे। वहीं बदरीनाथ के कपाट 12 मई को खुलेंगे और आज टिहरी राजदरबार में 50 साल पहले समाप्त हुई ऐतिहासिक परंपरा को पुनर्स्थापित किया गया।

Badrinath Dham Rawal Pattabhishek Completed After Five Decades

चारधाम यात्रा शुरू होने के मात्र कुछ ही दिन शेष हैं, श्रद्धालु बेसब्री से चारों धामों के कपाट खुलने का इंतज़ार कर रहे हैं। श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 12 मई को खुल रहे है इससे पहले बदरीनाथ धाम से संबंधित पांच दशक पहले समाप्त हुई रावल पट्टाभिषेक की ऐतिहासिक परंपरा पुन: जीवित हो गई है। आज टिहरी राजदरबार नरेंद्र नगर में पूजा-अर्चना और विधि-विधान के साथ महाराजा मनुजयेंद्र शाह के द्वारा बदरीनाथ धाम के रावल का पट्टाभिषेक किया गया।

वर्ष 1977 में शुरू हुई थी परंपरा

यह परंपरा वर्ष 1977 में रावल टी केशवन नंबूदरी का पट्टाभिषेक से शुरू हुई थी लेकिन इसके बाद यह परंपरा रुक गई और इस वर्ष फिर से पांच दशक के बाद इसे शुरू किया गया है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने इसके लिए पहल की और आज राज दरबार में पूजा अर्चना के पश्चात रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी को महाराजा मनुज्येंद्र शाह सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह, बेटी शिरजा शाह सहित बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय और उपाध्यक्ष किशोर पंवार भी उपस्थिति थे।

सोने का कड़ा है सांस्कृतिक प्रतीक

समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय और उपाध्यक्ष किशोर पंवार की उपस्थिति में अंग वस्त्र भेंट कर सोने का कड़ा पहनाया गया। बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि रावल की नियुक्ति मंदिर समिति एक्ट 1939 से पहले महाराजा टिहरी की ओर से होती थी, यह पट्टाभिषेक और सोने का कड़ा उसी परंपरा का एक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक प्रतीक चिह्न है।