देहरादून: उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ाने के क्षेत्र में विशेष जोर दिया जा रहा है तो इसी क्रम में राज्य सरकार ने गढ़वाल के 52 गढ़ों के अवशेषों का जीर्णाेद्धार का फैसला किया है।
52 Garh of Garhwal: Govt to renovate the remains
उत्तराखंड की भावी पीढ़ी के और बाहरी राज्यों से आने वाले सैलानियों को उत्तराखंड के गढ़ों के अतीत के बारे में जानकारी हो सके। साथ ही राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने गढ़वाल में स्थित 52 गढ़ों के अवशेषों का जीर्णाेद्धार का निर्णय लिया है। राज्य सरकार ने गढ़ों के अवशेषों जीर्णाेद्धार के लिए जिला पर्यटन अधिकारियों से उनके क्षेत्र में स्थित गढ़ों की स्थिति, इतिहास आदि का ब्योरा देने की मांग की है। इन गढ़ों के संरक्षण और जीर्णाेद्धार करने के बाद यहां पर्यटक सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी।
गढ़ से हुई गढ़वाल की उत्पत्ति
गढ़वाल मंडल को पहले गढ़ों का देश कहा जाता था, क्यूंकि 14वीं सदी तक यहां 52 गढ़ हुआ करते थे। ये सभी गढ़ एक प्रकार से अलग-अलग रियासतों के रूप में स्थित थी, जिनमें राजा शासन किया करते थे। मान्यता है कि गढ़वाल शब्द की उत्पत्ति भी "गढ़" से हुई है। आज भी अलग-अलग क्षेत्रों में इन गढ़ों के अवशेष विद्यमान हैं।
ये हैं गढ़वाल के 52 गढ़
पहला गढ़ है नागपुर गढ़, ये जौनपुर परगना में था। यहां नागदेवता का मंदिर है। यहां के अंतिम राजा भजनसिंह हुए।
दूसरा गढ़ है कोल्ली गढ़, यहां बछवाण बिष्ट जाति के लोग रहते थे।
तीसरा गढ़ है रवाणगढ़ , ये बद्रीनाथ मार्ग में पड़ता है और यहां रवाणी जाति की बहुलता थी।
चौथा गढ़ है फल्याण गढ़, ये फल्दकोट में था और फल्याण जाति के ब्राहमणों का गढ़ था।
पांचवां गढ़ है वागर गढ़, ये नागवंशी राणा जाति का गढ़ था।
छठा गढ़ है कुईली गढ, ये गढ़ सजवाण जाति का गढ़ था।
सातवां भरपूर गढ़ है, ये भी सजवाण जाति का गढ़ था।
आठवां गढ़ है कुजणी गढ़, ये भी सजवाण जाति से जुड़ा है, यहां के आखिरी थोकदार सुल्तान सिंह थे।
नवां है सिलगढ़, ये भी सजवाण जाति का गढ़ था।
दसवां गढ़ है मुंगरा गढ़, रवाई स्थित ये गढ़ रावत जाति का था।
11वां गढ़ है रैका गढ़ , ये रमोला जाति का गढ़ था।
12वां गढ़ है मोल्या गढ़, रमोली स्थित ये गढ़ भी रमोला जाति का था।
13वां ग़ढ़ है उपुगढ़, ये गढ़ चौहान जाति का था।
14वां गढ़ है नालागढ़, देहरादून जिले में इसे बाद में नालागढ़ी के नाम से जाना जाने लगा।
15वां है सांकरीगढ़, रवाईं स्थित ये गढ़ राणा जाति का था।
16वां है रामी गढ़, इसका संबंध रावत जाति से था।
17वां गढ़ है बिराल्टा गढ़, ये गढ़ रावत जाति का ही गढ़ था।
18वां है चांदपुर गढ़, ये सूर्यवंशी राजा भानुप्रताप का गढ़ था।
19वां चौंडा गढ़ है, चौंडाल जाति का ये गढ़ शीली चांदपुर में था।
20वां गढ़ है तोप गढ़, ये तोपाल जाति का था।
21वां है राणी गढ़, इसकी स्थापना एक रानी ने की थी और इसलिए इसे राणी गढ़ कहा जाने लगा।
22वां है श्रीगुरूगढ़, ये गढ़ पडियार जाति का था।
23वां है बधाणगढ़, यहां बधाणी जाति के लोग रहते थे।
24वां लोहबागढ़, ये गढ़ नेगी जाति का गढ़ था।
25वां है दशोलीगढ़, इस गढ़ को मानवर नाम के राजा ने प्रसिद्धि दिलायी थी।
26वां है कंडारागढ़, यहां कंडारी जाति के लोग रहते थे।
27वां है धौनागढ़ , ये धौन्याल जाति का गढ़ था।
28वां है रतनगढ़ यहां धमादा जाति के लोग रहते थे।
29वां गढ़ है एरासूगढ़, ये गढ़ श्रीनगर के ऊपर था।
30वां गढ़ है इडिया गढ़, यहां इडिया जाति के लोग रहते थे।
31वां है लंगूरगढ़, लंगूरपट्टी में इसके निशान अभी भी हैं।
32वां है बाग गढ़, ये नेगी जाति का गढ़ था।
33वां है गढ़कोट गढ़, ये गढ़ बगड़वाल बिष्ट जाति का था।
34वां है गड़तांग गढ़, ये भोटिया जाति का गढ़ था।
35वां है वनगढ़ गढ़, 36वां भरदार गढ़ है। : यह वनगढ़ के करीब स्थित था।
37वां चौंदकोट गढ़, इसके अवशेष चौबट्टाखाल के ऊपर पहाड़ी पर अब भी दिख जाएंगे।
38वां है नयाल गढ़, ये नयाल जाति का गढ़ था।
39वां है अजमीर गढ़, ये पयाल जाति का था।
40वां है कांडा गढ़, ये रावत जाति का गढ़ था।
41वां है, सावलीगढ़,
42वां बदलपुर गढ़
43वां संगेलागढ़, यहां बिष्ट जाति के लोग रहते थे।
44वां गुजड़ूगढ़, 45वां जौंटगढ़, 46वां देवलगढ़, 47वां लोदगढ़, 48वां जौंलपुर गढ़, 49वां चम्पा गढ़ , 50वां डोडराकांरा गढ़, 51वां भुवना गढ़ और 52वां गढ़ है लोदन गढ़।