टिहरी गढ़वाल: चिपको आंदोलन ने पर्यावरण को बचाने में कितना महत्वपूर्ण योगदान रखा है ये आप सब जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि चिपको आंदोलन का एक भागीदार आज भी पर्यावरण को बचाने में लगा हुआ है। चिपको आंदोलन से प्रेरणा लेकर टिहरी गढ़वाल के हैवल घाटी के जड़धार गांव के रहने वाले किसान विजय जड़धारी ताउम्र प्रकृति को बचाने के आंदोलन से जुड़े रहे हैं।
Vijay Jardhari and Beej Bachao Andolan in Utttarakhand
विजय जड़धारी पिछले 40 वर्षों से प्रकृति के संरक्षण में आंदोलनरत हैं। विजय जड़धारी अब 70 वर्ष के हो चुके हैं, लगभग 28-30 साल की उम्र में विजय ने गौरा देवी और चिपको आंदोलन से प्रेरणा ली थी। तब से लेकर आज तक लगभग 40 वर्षों से वह प्रकृति का संरक्षण कर रहे हैं। उत्तराखंड की पारंपरिक कृषि के लिए विजय जड़धारी द्वारा 300 से ज्यादा पहाड़ी बीजों का संरक्षण किया गया है।
जड़ों से जुड़ना ही समाधान
इस जमाने में जब चीजें हर दिन बदल रही हैं, मां धरा के एक और लाल ने अपना पूरा जीवन प्रकृति के संरक्षण में लगा दिया है.. विजय जड़धारी उत्तराखंड के अनाज जैसे झंगोरा, मांडवा और पहाड़ के प्रसिद्ध बारहनाज जैसे पारंपरिक बीजों को संरक्षित करने में लगे हैं। विजय जी का कहना है कि प्रकृति ने हमें जो वरदान दिया है उसे संरक्षित करना बहुत जरूरी है। सिर्फ बीज ही नहीं, विजय जी उत्तराखंड के पहाड़ों की पारंपरिक कृषि पद्धतियों पर भी काम कर रहे हैं। काले भट्ट, सफेद भट्ट, कोदा, झंगोरा, मंडवा आदि 300 से ज्यादा उत्तराखंड के पहाड़ों के परंपरागत बीजों की खेती विजय किसानों से करवा रहे हैं।
पहाड़ी किसान के हाथ ही भगवान
विजय जड़धारी बारहनाजा नाम से एक किताब भी लिख चुके हैं, जिसके लिए नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान ने विजय को प्रणमानंद साहित्य पुरस्कार से भी नवाजा है। विजय जड़धारी जी का कहना है कि परंपरागत पहाड़ी खेती मशीनों पर न होकर किसान के हाथों पर आधारित थी, इसे-इसी प्रकार से संरक्षित कर और आगे बढ़ाकर उत्तराखंड में कृषि और प्रकृति का संवर्धन एवं संरक्षण किया जा सकता है।