देहरादून: उत्तराखंड की हरी-भरी वादियों और बर्फीली चोटियों के बीच एक ऐसा ऐतिहासिक खजाना है, जिसकी लंबे समय तक सुध नहीं ली गई। कभी पहाड़ियों की वीरता और संस्कृति की गाथा गाते ये किले समय के साथ खंडहर बन गए थे। लेकिन 15 सालों की खोजबीन के बाद उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र यानी यूसेक के वैज्ञानिकों ने इन धरोहरों को फिर खोज निकाला है। वर्ष 2008 से 2023 तक लगातार चले एक शोध में यूसेक के वैज्ञानिकों ने बताया कि उत्तराखंड में 403 ऐतिहासिक गढ़ और किले मौजूद हैं।
USAC discovered 403 forts and castle in Uttarakhand
अब तक की जानकारी गढ़वाल के 52 किले तक सीमित थी। ये गढ़ और किले ना केवल स्थापत्य कला के बेहतरीन उदाहरण हैं, बल्कि उत्तराखंड की राजनीतिक सामाजिक और सामरिक विरासत को भी दर्शाते हैं। गढ़ और किलों का सम्रिध्शाली लेकिन भूला हुआ अध्याय अब जाग चुका है, लेकिन इसके साथ ही एक नई बहस अब गढ़ों, दुर्गों और किलों पर शुरू हो गयी है।
गढ़ और किले में फर्क क्या है
गढ़ बड़े दुर्गम और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान पर जबकि किले सीमांत क्षेत्रों या गांव की सुरक्षा के लिए बनाये जाते थे। उत्तराखंड की धरती पर परमार, कत्यूरी और चंद वंश ने शासन किया। इन राजवंशियों ने अपनी-अपनी रियासतों की सीमाओं को संरक्षित करने के लिए राजधानियों में गढ़ और सीमाओं पर किले बनाए। उद्देश्य था.. रणनीति, निगरानी और सुरक्षा। यूसेक के वैज्ञानिकों ने 15 साल तक उत्तराखंड के हर जिले की हर घाटी का दौरा किया। जीआईए सेटेलाइट मैपिंग और फील्ड सर्वेक्षण की मदद से जो सामने आया वो बेहद रोमांचक है। कुल मिलाकर 403, जिनमे 235 गढ़ और 168 किले शामिल हैं और जिनका अब तक कोई रिकॉर्ड नहीं था, वह अब दस्तावेजी रूप से मौजूद हैं। आइये जानते हैं.. किस जिले में कितने गढ़ और किले युसेक ने ढूंढ निकाले हैं...
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पौड़ी गढ़वाल: 81 गढ़ और 27 किले। दरअसल, श्रीनगर गढ़वाल कभी गढ़वाल रियासत की राजधानी थी और पौड़ी की भौगोलिक स्थिति भी रणनीतिक थी। सीमा के उस पार कुमाऊं की रियासतों ने पौड़ी के राजवंशियों को गढ़ और किले बनाने पर मजबूर किया।
टिहरी गढ़वाल: यहां 55 गढ़ और नौ किले हैं।
पिथौरागढ़: पिथौरागढ़ में 42 किले हैं।
अल्मोड़ा: अल्मोड़ा में आठ गढ़ और 29 किले हैं।
चंपावत: 17 किले।
देहरादून: 19 गढ़।
रुद्रप्रयाग: 19 गढ़ और तीन किले।
उत्तरकाशी: 18 गढ़ और छह किले।
चमोली: 15 गढ़ और पांच किले।
हरिद्वार: चार गढ़।
नैनीताल: 18 किले।
बागेश्वर: एक गढ़ और 11 किले।
उधम सिंह नगर: एक किला।
कैसे होगा पुनरुद्धार
युसेक की इस रिसर्च के प्रमुख रहे वैज्ञानिक डॉ गजेंद्र सिंह बताते हैं कि यह सिर्फ ऐतिहासिक पहचान नहीं बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान का विषय है। गोविंद सिंह नेगी और डॉ नवीन चंद्रा जैसे शोधकर्ताओं ने हर किले का स्थानीय संदर्भ स्थापत्य शैली और संभावित कालखंड भी दर्ज किया है। लेकिन माना जा रहा है कि अभी भी अधिकांश गढ़ और किले जर्जर हालत में जंगल में खो गए हैं। इनमे से कई को आसपास के गांव वालों ने पहचान रखा है, लेकिन वो भी खंडहर बन चुके हैं। इस तरह का कोई गढ़ जब ख़त्म होता है तो सिर्फ एक इमारत नहीं बल्कि एक पूरा कालखंड मौन हो जाता है। उत्तराखंड के इन किलों की समृद्ध विरासत को पर्यटन और शिक्षा का हिस्सा बनाया जा सकता है। स्थानीय युवाओं को गाइड ट्रेनिंग भी इन किलों के लिए दी जा सकती है। साथ ही डॉक्यूमेंट्री फिल्म्स के माध्यम से उत्तराखंड के इस समृद्ध इतिहास और स्वाभिमान के साथ ही हमारी संस्कृति का पुनरुद्धार किया जा सकता है।