: देवभूमि में मौजूद शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है माता कुंजापुरी का भव्य मंदिर। यहां एक बार आएंगे, तो आपको बार बार आने का मन करेगा। यहां से आप गढ़वाल की पहाड़ियों जैसे बंदरपूंछ, स्वर्गारोहिणी, गंगोत्री और चौखम्भा को देख सकते हैं। इस मंदिर की कहानी स्कंदपुराण में सुनने को मिलती है। राजा दक्ष की पुत्री, सती का विवाह भोलेनाथ से हुआ था। त्रेता युग में देवताओं ने असुरों को हराया था तो कनखल में एक यज्ञ का आयोजन किया गया था। इस यज्ञ में भोलनाथ को नहीं बुलाया गया था। सती ने अपने पति के अपमान के बारे में सुना तो यज्ञ-स्थल पर पहुंचकर उन्होंने हवन कुंड में अपनी बलि दे दी। इसके बाद भगवान शंकर क्रोध में आ गए। भगवान शिव ने हवन कुंड से सती के शरीर को निकाला और कई सालों तक इसे अपने कंधों पर ढोते हुए दुनिया में घूमते रहे।
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क्रोध में भगवान शिव पूरी दुनिया को नष्ट कर सकते थे। आखिरकार देवतां ने फैसला लिया कि भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करेंगे। भगवान शंकर के जाने बगैर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 टुकड़ों में बांट दिया। धरती पर जहां भी सती के शरीर का अंग गिरा वो जगह सिद्ध पीठ कहलाई। माता सती के शरीर के ऊपरी भाग, यानि कुंजा इस स्थान पर गिरा जो आज कुंजापुरी के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर उत्तराखंड में 51 सिद्ध पीठों में से एक है। मंदिर तक आपको तीन सौ आठ कंक्रीट की सीढ़ियां पहुंचाती हैं। यहां प्रवेश की पहरेदारी शेर, और हाथी के मस्तकों द्वारा की जा रही है। मंदिर के गर्भ गृह में कोई प्रतिमा नहीं है। कहा जाता है कि वहां पर एक गड्ढा है। कहा जाता है कि ये ही वो जगह है जहां मां भगवती की कुंजा गिरी थी।
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मंदिर में हर दिन सुबह 6.30 और शाम 5 से 6.30 बजे तक आरती होती है। कुंजापुरी के पुजारी उस वंश से आते हैं जिसने पीढ़ियों से कुंजापुरी मंदिर में पूजा की है। खास बात ये है कि गढ़वाल के बाकी मंदिरों में पुजारी एक ब्राह्मण होता है। इसके ठीक उलटे कुंजापुरी पुजारी राजपूत होते हैं। उन्हें इस मंदिर में बहुगुणा जाति के ब्राह्मणों के द्वारा शिक्षा दी जाती है। अब आपको इस मंदिर का वैज्ञानिक रहस्य भी बता देते हैं। कई बार इस मंदिर को लेकर देश और विदश के वैज्ञानिक कई बातें कह चुके हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि इस स्थान पर कोई विचित्र सी ताकत है, जो लगातार विचरण करती है। इसके साथ ही इस मंदिर की तुलना कई बार कसार दवी मंदिर से की गई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तरह से कसार देवी मंदिर मं शक्ति पुंज विचरण करता है, कुछ ऐसा ही मां कुंजापरी देवी मंदिर में भी है।