इन्हें क्या कहें ? पहाड़ का पैरोकार कहें या एक अद्वितीय साहित्यकार कहें। इन्हें चित्रकार कहें या फिर व्यंग्यकार कहें। हर पैमाने पर बी. मोहन नेगी सटीक बैठते थे। 65 साल की उम्र में भी जिंदादिल, हंसमुख चेहरा और ठोस पहाड़ी व्यक्तित्व के धनी बी मोहन नेगी अब हमारे बीच नहीं रहे। वो काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। मूलरूप से पुण्डोरी गांव पट्टी मनियारस्यूं निवासी नेगी जी ने कैलाश हॉस्पिटल देहरादून में अंतिम सांस ली। जरा सोचिए जिस शख्स ने 70के दशक से कविता पोस्टर में रंग भरना शुरू किया, जिस शख्स ने दुनिया को उत्तराखंड की कला और संस्कृति से रू-ब-रू करवाया, कैसे रहे होंगे वो जीवट पहाड़ी। कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल की कविताओं पर उन्होंने सबसे ज्यादा 100 कविता पोस्टर रचे। दिल्ली, मुंबई, समेत कई जगहों पर उनकी पेंटिंग्य की प्रदर्शनी की गई।
दूरदर्शन ने उनके भोजपत्र चित्रकला पर फेश इन द क्राउन नाम से प्रोग्राम दिया था। इसके लिए उन्हें हिमगिरी सम्मान, चंद्र कुंवर बर्त्वाल सम्मान और ना जाने कितने सम्मन मिले थे। सीमाओं से बाहर निकल कर बी. मोहन नेगी ने जहां सम्भावनाएं महसूस कीं वहां उड़ान भरी। बहुत नये प्रयोग किये। माध्यम के रूप में भी वो परम्परागत माध्यमों से बंधकर नहीं रहे। वाटर कलर, पोस्टर कलर, आॅयलपेन्ट, फेब्रिक, ब्लैकइंक सहित कुछ माध्यमों के द्वारा भी उन्होंने कैनवास पर आकृतियों को उभारा। बी. मोहन नेगी के द्वारा बनाये गये कविता पोस्टर कला और साहित्य दोनो दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। चन्द्रकुंवर बत्र्वाल पर बनाये गये कोलाज शैली के कविता पोस्टरों की सीरीज उनका उल्लेखनीय योगदान कहा जाता है। इन पोस्टरों के साथ चंद्रकुँवर के कविता संसार से गुजरना एक दुर्लभ अनुभव होता है।
गढ़वाली कविताओं को चुन-चुन कर उन पर कविता पोस्टरों का निर्माण सिर्फ बी. मोहन नेगी ही कर सकते थे। ये कविता पोस्टर आम लोगों से गढ़वाली कविता का परिचय कराने लगे थे। इसके साथ ही नई पीढ़ी का ध्यान गढ़वाली साहित्य की ओर खींच रहे थे। बी. मोहन नेगी के रेखांकनों में पहाड़ का बिम्ब नजर आता है। चाहे वो माॅडर्न आर्ट हो या राजा रवि वर्मा की शैली की चित्रकला हो। पहाड़ उनके चित्रों से पल भर के लिए भी दूर नहीं होता। रेखाओं में एकाग्रता और गति होती है। आप उनके किसी कार्य को देख लीजिए। उस पर बी. मोहन नेगी के कठोर परिश्रम की झलक स्पष्ट नजर आयेगी। वो कौशल और हुनर पर आत्मीयता, एकाग्रता और तन्मयता को तरजीह देने वाले चित्रकार थे। साहित्य की अच्छी समझ रखने वाले चित्रकार थे बी. मोहन। शायद यही बात उन्हें कविता पोस्टरों तक खींच ले गई।
उनकी साहित्य की समझ को उनके द्वारा चयनित कविताओं में देखा जा सकता है। गढ़वाली साहित्य के दुर्लभ पुस्तकों के संग्रहकर्ता के रूप में उनका एक और उल्लेखनीय योगदान है। आध्यात्मिक शुचिता से मुक्त, भारतीय ऋषि परम्परा का निर्वहन करते हुए एक अनोखा जीवन जीने वाले ऐसे चित्रकार जो कभी भी ‘दूसरी वजहों’ से चर्चा में नहीं रहे और ना ही रहना चाहा। कला साधना में इतना गहरे उतरने के बावजूद अपने आप को एक जिम्मेदार नागरिक बनाये रखा। वो एक सफल पति और जिम्मेदार पिता भी थे। अच्छे मित्र, दोस्त और शुभचिंतक भी थे। सत्ता के गलियारों में अपनी पहचान अंकित करने में वो पीछे नहीं हटे। छोटे पहाड़ी कस्बों में कला साधना में डूबा बड़ा चित्रकार। चित्रकला बहुत लोकप्रिय विधा नहीं है, इसके बावजूद उसे लोकप्रिय बनाने वाला कलाकार। ऐसे कलाकार को राज्य समीक्षा का शत शत नमन
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