: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक अद्भुत मंदिर मौजूद है। जसोली गांव, डांड़ाखाल क्षेत्र मे स्थित एक मंदिर है, इस मंदिर को माता हरियाली देवी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथा कहती हैं कि जब देवकी माता की सातवीं संतान के रूप में ‘महामाया’ पैदा हुई थी तो ‘कंस’ ने महामाया को धरती पर पटक कर मारना चाहा था। इसके बाद महामाया माता के शरीर के टुकड़े पूरी पृथ्वी पर बिखर गए। महामाया का हाथ इस क्षेत्र में गिरा और ये स्थान हरियाली सिद्ध पीठ कहलाया जाने लगा। यहाँ हर साल कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर तीन दिनों का मेला और दिपावाली के मौके पर दो दिनों के मेले का आयोजन होता है। इस दौरान मां हरियालीे की ड़ोली को 7 किमी की दूरी पर ‘हरियाली कांठा’ तक ले जाते हैं। मान्यता है कि मां यहीं से पूरी देवभूमि को हरा-भरा रखती हैं। इस दौरान देश-विदेश से यहां मां के भक्त आते हैं।यह भी पढें - देवभूमि की मां भद्रकाली..2000 साल पुराना मंदिर, जहां तीनों लोकों के दर्शन एक साथ होते हैं!
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इसके पीछे एक परम्परा भी है। सभी भक्तजन नंगे पांव दिन और रात की यात्रा करने के बाद सुबह 6 बजे सूरज की पहली किरण के साथ ही वहाँ पर पहुँचते है। इस यात्रा की एक और मान्यता ये भी है की इस यात्रा मे सिर्फ पुरुष ही शामिल हो सकते है। यात्रा पश्चात मां जब कांठा मे पहुंचती है, तो ड़ोली को मंदिर के अन्दर नहीं रखा जाता है। पूर्वजों का कहना है कि अगर मां की डोली को मंदिर के भीतर रखा गया, तो मां अपना आसन वहीं जमा देंगी। फिर वहां पर मां को भोग चढाया जाता है पूजा अर्चना की जाती है। जो श्रदालु यहां सच्चे दिल से कोई मन्नत लेकर जाता है, तो मां उसे फल के रूप मे आर्शिवाद देती है और भक्त की मनोकामना पूरी करती है। दूसरे दिन मां मायके से ससुराल के लिए जाती हैं, तब मां की ड़ोली को नम आँखों से उनके ससुराल भेजा जाता है। यह भी पढें - देवभूमि का देवीधुरा मंदिर, यहां आज भी होता है बग्वाल युद्ध..रक्त से लाल होती है धरती
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भक्तों द्वारा दी गई भेंट से मां की ड़ोली बहुत भारी हो जाती है। डोली का भार इतना ज़्यादा होता है कि उठाना भी बहुत मुश्किल होता है। इसके बाद दिवाली के दिन पूरे क्षेत्रवासी मां की डोली का उनके ससुराल जसोली पहुँचने का इंतजार करते है। इस दौरान भक्त बड़ी संख्या में भक्त जसोली पहुँचते है। देश-विदेशों में मां के कई भक्त हैं, जो इस दौरान यहां आते हैं। इस दौरान सभी लोग माता की प्रतीक्षा और सम्मान में व्रत रखते है। जब मां की डोली वहाँ पहुँचती है तो सभी लोग अपने पशुओं यानी गाय और बैलों की पूजा करते है। पूजा अर्चना के बाद ही भक्त और श्रद्धालु खुद खाना खाते हैंं। जो भक्त इस यात्रा मै शामिल होते हैं, उनके लिए यहां पर भंडारा भी लगाया जाता है। मां हरियाली देवी को देवभूमि हरियाली, सौभाग्य और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है। कभी मौका लगे तो इस दिव्य धाम में दर्शन के लिए जरूर आएं।