उत्तराखंड Story of darban singh negi

पहाड़ का अमर शहीद, जो जर्मन सेना पर अकेले ही भारी पड़ा..मिला था वीरता का सर्वोच्च सम्मान

पहाड़ के वीरों की कुछ कहानियां जानकर आज भी दिल में जोश पैदा होता है। इन्हीं में से एक कहानी है वीर सपूत दरबान सिंह नेगी की। पढ़िए

दरबान सिंह नेगी: Story of darban singh negi
Image: Story of darban singh negi (Source: Social Media)

: चमोली जिले में 4 मार्च 1883 को एक वीर योद्धा का जन्म हुआ था। प्रथम विक्टोरिया क्रॉस नायक दरबान सिंह नेगी 3 बहनों और दो भाइयों में दूसरे नम्बर के थे। उस दौरान पूरी कड़ाकोट पट्टी समेत पिंडर घाटी में एक भी स्कूल नहीं था। विषम परस्थितियों के बावजूद यहां के लोगों में मात्रभूमि की रक्षा का जज्बा देखने लायक है। बचपन से ही दरबान सिंह नेगी ने लोगों से सेना की वीरता की कहानियां सुनी थी। मन ही मन वे सेना में जाना चाहते थे। 4 मार्च 1902 को वो महज 19 साल की उम्र में 39 गढ़वाल राइफल्स में बतौर राइफल मैन भर्ती हुए। 20 अगस्त 1914 की बात है, ये बटालियन लैंसडाउन से कराची के लिए निकली। यहां से इस बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध में यूरोपियन फ्रंट में शामिल होने के लिये फ़्रांस पहुंचना था। युद्ध में दरबान सिंह नेगी ने अतुलनीय साहस दिखाया।

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उन्होंने जर्मन सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया। गढ़वाली बटालियन ने मोर्चे को अपने हाथ में लेते हुए एक किनारे से आगे बढ़ना शुरू किया और 24 नवम्बर की सुबह 3 बजे से बटालियन आगे बढने लगी। दुश्मनों को पीछे धकेलती रही। इस पल्टन में दरबान सिंह नेगी सबसे आगे थे। उन्होंने दुश्मनों का डटकर सामना किया। कई दुश्मनों को मौत की नींद सुलझा दिया था। इस दौरान उनके सिर पर दो जगह और बांह में एक जगह गोली लगी। अत्यधिक रक्तस्राव होने लगा था। फिर भी दरबान सिंह नेगी ने लड़ाई जारी रखी और विजय प्राप्त करके ही दम लिया। जब लड़ाई खत्म हुई तो हर कोई दरबान सिंह नेगी की वीरता और पराक्रम को देख हैरान था। अकेले ही एक गढ़वाली जर्मन सेना पर भारी पड गया था। सिर से लेकर पांव खून से लथपथ था, इसलिए उन्हें इलाज के लिए ले जाया गया।

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दरबान सिंह नेगी के अदम्य शौर्य की चारों और प्रशंसा होने लगी। गढवाली बटालियन की ख्याति विश्व में फैल गयी। 05 दिसम्बर 1914 को किंग जॉर्ज पंचम ने प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए युद्ध के मैदान में खुद जाकर दरबान सिंह नेगी को सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया। जार्ज पंचम दरबान सिंह नेगी से इतने प्रभावित हुए उनसे दो चीजें मांगने को कहा। दरबान सिंह नें कर्णप्रयाग में मिडिल स्कूल और दूसरा हरिद्वार-ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन की मांग जार्ज पंचम के सामनें रखी। दोनों मांगें फ्रांस की धरती पर ही किंग जॉर्ज पंचम ने स्वीकार कर ली। 26 अक्टूबर 1918 को कर्णप्रयाग में वार मेमोरियल एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की स्थापना हुई। 24 जून 1950 को सूबेदार बहादुर, दरबान सिंह नेगी नें अपनें पैतृक गांव कफारतीर में अंतिम सांसे ली। नमन है वीर सपूत आपको ।