उत्तराखंड Story of jeetu bagdwal

Video: गढ़वाल के अदृश्य देवता जीतू बगड्वाल...प्यार, परियां और रक्षा का ये इतिहास जानिए

गढ़वाल में सदियों पहले वो दौर कैसा रहा होगा ? ये सोचकर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं।

उत्तराखंड न्यूज: Story of jeetu bagdwal
Image: Story of jeetu bagdwal (Source: Social Media)

: उत्तराखंड में कदम कदम पर आपको कई कहानियां सुनने को मिलेंगी। अगर आप उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में जाएंगे तो यहां आपको जीतू बगड्वाल की कहानी बहुत सुनने को मिलेगी। गढ़वाल के लगभग हर गांव में जीतू बगड्वाल की कथाओं का मंचन किया जाता है। हर कथा में सिर्फ एक ही बात निकलकर सामने आती है। आज से एक हजार साल पहले जीतू बगड्वाल की कहानी क्या रही, वो दौर कैसा रहा होगा ? ये सोचकर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आज से एक हजार साल पूर्व तक प्रेम कथाओं और कहानियों का युग रहा है। उस युग ने 16वीं-17वीं सदी तक आम लोगों के जीवन में दखल दी है। हमारा उत्तराखंड भी इन प्रेम प्रसंगों से अछूता नहीं है। बात चाहे राजुला-मालूशाही की हो या तैड़ी तिलोगा की, इन सभी प्रेम गाथाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। लेकिन, सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली 'जीतू बगड्वाल' की प्रेम गाथा को, जो आज भी लोक में जीवंत है।

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था। अपनी तांबे की खानों के साथ उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहिन सोबनी को लेने उसके ससुराल रैथल पहुंचता है। हालांकि जीतू मन ही मन अपनी प्रेयसी भरणा से मिलना चाहता था। कहा जाता है कि भरणा अलौकिक सौंदर्य की मालकिन थी। भरणा सोबनी की ननद थी। जीतू और भरणा के बीच एक अटूट प्रेम संबंध था या यूं कहें कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने थे। जीतू बांसुरी भी बहुत सुंदर बजाता थे। एक दिन वो रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजाने लगते हैं। रैथल का जंगल खैट पर्वत में है, जिसके लिए कहा जाता है कि वहां परियां निवास करती हैं। जीतू जब वहां बांसुरी बजाता है तो बांसुरी की मधुर लहरियों पर आछरियां यानी परियां खिंची चली आई।

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वो जीतू को अपने साथ ले जाना चाहती थी। तब जीतू उन्हें वचन देता है कि वो अपनी इच्छानुसार उनके साथ चलेगा। आखिरकार 9 गते अषाण की रोपणी का वो दिन भी आता है, जब जीतू को परियों के साथ जाना पड़ा। रोपणी लगाते लगाते आंछरियां जीतू बगडवाल को अपने साथ ले जाती हैं, जीतू के जाने के बाद उसके परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा। बताया जाता है कि जीतू के भाई की साजिश के तहत हत्या हो जाती है। कहा जाता है कि इसके बाद जीतू अदृश्य रूप में परिवार की मदद करता है। तत्कालीन राजा को भी एहसास होता है कि जीतू एक अदृश्य शक्ति बनकर गांव की रक्षा कर रहा है। राजा ये सब कुछ भांपकर ऐलान करता है कि आज से जीतू को पूरे गढ़वाल में देवता के रूप में पूजा जाता है। तब से लेकर आज तक जीतू की याद में पहाड़ के गाँवों में जीतू बगडवाल का मंचन किया जाता है। जो कि पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है।

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