उत्तराखंड Story of garjiya devi of uttarakhand

देवभूमि के इस देवी मंदिर की परिक्रमा शेर करता था, वन अधिकारी भी देखकर हैरान थे !

इस मंदिर के महात्म्य के बारे में आप जितना जानने की कोशिश करेंगे, उतने ही हैरानी के सागर में डूबते चले जाएंगे।

उत्तराखंड न्यूज: Story of garjiya devi of uttarakhand
Image: Story of garjiya devi of uttarakhand (Source: Social Media)

: राज्य समीक्षा पर आप उत्तराखंड के अलग अलग मंदिरों की कहानी पढ़ते होंगे। कहा भी जाता है कि देवभूमि उत्तराखंड में कदम कदम पर आपको चमत्कार ही दिखेंगे। आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, उसके बारे में स्थानीय लोग और वन विभाग के अधिकारी भी कुछ खास बातें बताते हैं। उत्तराखंड के रामनगर से 10 किलोमीटर की दूरी पर ढिकाला मार्ग पड़ता है। यहां गर्जिया नामक जगह पर गिरिजा देवी का एक मंदिर है। गिरिजा मां यानी गिरिराज हिमालय की पुत्री और भगवान शंकर की अर्द्धागिनी। इस मंदिर के महात्म्य के बारे में आप जितना जानने की कोशिश करेंगे, उतने ही हैरानी के सागर में डूबते चले जाएंगे। कहा जाता है कि 1940 से पहले ये क्षेत्र जंगल से भरा पड़ा था। सबसे पहले वन विभाग के अधिकारियों ने इस जगह पर कुछ मूर्तियां देखी।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - Video: उत्तराखंड का वो दिव्य धाम, जिसकी कृपा से रजनीकांत बने फिल्मी दुनिया का मेगास्टार
हैरानी हुई कि इस सुनसान क्षेत्र में मूर्तियां कहां से आ गई। ये वो वक्त था, जब वन विभाग के अधिकारियों को एक अद्भुत शक्ति का अहसास हुआ था। वन विभाग के बड़े अधिकारी भी ये सुनकर यहां पर आए। कहा जाता है कि कई बार अधिकारियों और स्थानीय लोगों द्वारा एक शेर को इस मंदिर की परिक्रमा करते हुए देखा गया। वो शेर मंदिर में परिक्रमा करते हुए भयंकर गर्जना करता था। एक कहानी ये भी कहती है कि कूर्मांचल की सबसे प्राचीन बस्ती ढिकुली के पास ही थी। कोसी के किनारे बसी इस जगह का नाम उस वक्त वैराटनगर था। कत्यूरी राजवंश, गोरखा वंश, चंद राजवंश और अंग्रेज शासकों ने इस पवित्र भूमि के अलौकिक आध्यात्म को महसूस किया है। जनश्रुति है कि देवी गर्जिया को उपटा देवी (उपरद्यौं) के नाम से जाना जाता था।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - उत्तराखंड की वो शक्तिपीठ… जहां हर रात विश्राम करती हैं महाकाली !
कहा जाता है कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में है, वो कोसी नदी की बाढ़ में बहकर आ रहा था। मंदिर को टीले के साथ बहते हुए देख भगवान भैरवनाथ द्वारा उसो रोकने की कोशिश की गई थी। भगवान भैरवनाथ द्वारा कहा गया कि “थि रौ, बैणा थि रौ। यानी (ठहरो, बहन ठहरो), यहां मेरे साथ निवास करो। कहा जाता है कि तभी से गर्जिया देवी यहां निवास कर रही है। अगर आप यहां आ रहे हैं को जटा नारियल, सिन्दूर, लाल वस्त्र, धूप, दीप चढ़ाएं। यहां हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। जब मनोकामना पूर्ण होती है तो यहां घण्टी या फिर छत्र चढ़ाया जाता है। निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिये मां भगवती में चरणों में झोली फैलाते हैं। अद्भुत दैवीय शक्तियों से परिपूर्ण है हमारा उत्तराखंड। मां गर्जिया देवी के दर्शनों के लिए उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश विदेशों से श्रद्धालु आते हैं।