पलायन के इस दौर में थोड़ी सी उम्मीद जगती है यह देख कर कि उत्तराखंड में कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो संस्कृति को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं। अच्छा लगता है कि आज का युवा कहीं भी जा रहा है, कुछ भी कर रहा है, लेकिन उसके दिल में उत्तराखंड है। बल्कि कहना गलत नहीं होगा कि गर्व होता है ऐसे युवाओं पर, जो अपने दिल में उत्तराखंड के लिए अलग जगह बनाकर चलते जा रहे हैं। ऐसे ही एक युवा हैं सोमेश गौर। सोमेश कोटद्वार के रहने वाले हैं, देश की राजधानी दिल्ली में एक आईटी कंपनी में जॉब करते हैं और दिल से पक्के पहाड़ी हैं। साथ में रुचिका कंडारी हैं जो अपने आप में विशुद्ध पहाड़ी टैलेंट का खजाना हैं। अच्छी गायकी, अदाकारी, नृत्य और अपने काम की समझ उन्हें भीड़ से अलग करती है। गढ़वाली संगीत के लिए बहुत कुछ करने का विचार दोनों के मन में है और अपने उसी सपने को जी रहे हैं। वॉयस ऑफ उत्तराखंड नाम से सोमेश ने यू-ट्यूब पर एक चैनल भी तैयार किया है। राज्य समीक्षा के मध्यम से हमने पहले भी सोमेश द्वारा गाये और संगीतबद्ध किये हुए नेगी जी के गढ़वाली गीत ‘जौ जस देई’ को प्रकाशित किया था।
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ऐसे प्रभावशाली गीतों को आवाज देना और उस पर खूबसूरत वीडियो तैयार करना हर किसी के बस में नहीं है। इस बार सोमेश लेकर आये हैं पहाड़ की आत्मा में बसा हुआ एक और गढ़वाली गीत। नरेन्द्र सिंह नेगी और मीना राणा का गया हुआ गीत ‘ह्युंद का दिना’ पहाड़ के कई उभरते हुए संगीतकार अपने अंदाज में पहले भी गा चुके हैं। सोमेश ने इसी गीत में नवीन खंतवाल के लिखे ‘मैं न मिल सकूँ अगर’ हिंदी शब्द जोड़े हैं। इससे गीत बहुत अच्छा बन पड़ा है। सोमेश गौर के साथ ही इस गीत में सती और सौरभ ने म्यूजिक दिया है। इसके स्क्रीन प्ले और हिंदी शब्द नवीन खंतवाल के हैं। गिटार पर सौरभ चौधरी हैं जबकि सोमेश के साथ सिद्धांत अग्रवाल ने गीत को कंपोज़ किया है। इस म्यूजिक वीडियो की प्रोड्यूसर वंदना बिष्ट हैं। विडियो अच्छा बन पड़ा है। ये वीडियो देखिए ...
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