उत्तराखंड raj rajeshwari trishool of uttarkashi

उत्तरकाशी का ‘भगवती त्रिशूल’, जो उंगली से छूने पर हिलता है..पूरी ताकत लगाने से नहीं

काशियों में एक काशी उत्तरकाशी में अगर आप गए हैं, तो ये चमत्कार आपने खुद अपनी आंखों से देखा और महसूस किया होगा।

uttarkashi: raj rajeshwari trishool of uttarkashi
Image: raj rajeshwari trishool of uttarkashi (Source: Social Media)

: देवभूमि के हर कण में भगवान का वास है। यहां की धरती में कई मंदिर और शक्ति पीठ है जहां साल भर लोगों का तांता लगा रहता है। ऐसा ही एक प्राचीन शक्ति मंदिर है उत्तरकाशी में। जिसके द्वार वैसे तो साल भर भक्तों के लिए खुले रहते हैं। लेकिन नवरात्र और दशहरे के मौके पर श्रद्धालु यहां भारी तादात में पहुंचते है। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए भक्त इन दिनों यहां रात भर जागरण भी करते हैं। माना जाता है कि इन दिनों मां जो भी मुराद करो वो पूरी करती है। इस मंदिर में मां दुर्गा शक्ति स्तंभ (त्रिशूल) के रूप में विराजमान हैं। जो इस मंदिर में सबसे रोचक शक्ति स्तंभ है। इस शक्ति स्तंभ अंगुली से छूने से हिल जाता है, लेकिन जैसे ही आप इस स्तंभ पर जोर लगाकर हिलाने की कोशिश करेंगे यह नहीं हिलता।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - नवरात्र पर देवभूमि के इस शक्तिपीठ में जरूर जाएं, यहां जागृत रूप में रहती हैं मां भगवती
गंगोत्री और यमुनोत्री आने वाले यात्रियों के लिए यह शक्ति स्तंभ आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र होता है।इस शक्ति मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में मिलता है। यह सिद्धपीठ पुराणों में राजराजेश्वरी माता शक्ति के नाम से जानी गया है। कहा जाता है कि अनादि काल में देवासुर संग्राम हुआ। जिसमें देवता और असुरों के बीच महासंग्राम हुआ था। इस दौरान जब देवता हारने लगे तब उन्होंने अपनी रक्षा के लिए मां दुर्गा की उपासना की। जिसके बाद दुर्गा ने शक्ति का रूप धारण कर असुरों का वध कर दिया। इसके बाद यह दिव्य शक्ति के रूप में विश्वनाथ मंदिर के निकट विराजमान हो गई। अनंत पाताल लोक में भगवान शेषनाग के मस्तिक में शक्ति स्तंभ के रूप में विराजमान हो गई।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - घंटाकर्ण देवता को क्यों कहते हैं बदरीनाथ का रक्षक? 2 मिनट में ये कहानी जानिए
बड़े बड़े वैज्ञानिक भी आज तक ये पता नहीं लगा सके है कि यह शक्ति स्तंभ किस धातु का बना हुआ है। इस शक्ति स्तंभ के गर्भ गृह में गोलाकार कलश है। जो अष्टधातु का बना हुआ है। इस स्तंभ पर अंकित लिपि के मुताबिक ये कलश 13वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसकी स्थापना राजा गणेश ने गंगोत्री के पास सुमेरू पर्वत पर तपस्या करने से पहले किया था। ये शक्ति स्तंभ छह मीटर ऊंचा और 90 सेंटीमीटर परिधि वाला है। यात्रा काल में गंगोत्री यमुनोत्री के दर्शन करने वाले यात्री यहां इस शक्ति मंदिर के दर्शन करने जरुर पहुंचते है। अगर आप भी यहां दर्शन करने जाना चाहते है तो बता दे कि ऋषिकेश से सड़क मार्ग होते हुए 160 किलोमीटर चलकर आप उत्तरकाशी पहुंच जाएंगे। जिसके बाद उत्तरकाशी बस स्टैंड से तीन सौ मीटर दूर शक्ति मंदिर स्थित है।