उत्तराखंड Earthquake in pithoragarh and bageshwar

उत्तराखंड के दो जिलों में भूकंप...दहशत में घरों से बाहर निकले लोग

बार बार उत्तराखंड मे आते ये भूकंप के झटके क्या साबित कर रहे हैं? सवाल ये भी तो है कि क्या वैज्ञानिकों द्वारा की गई भविष्यवाणी सच साबित हो रही है?

उत्तराखंड: Earthquake in pithoragarh and bageshwar
Image: Earthquake in pithoragarh and bageshwar (Source: Social Media)

: एक बार फिर से उत्तराखंड के दो जिलों में भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। पिथौरागढ़ और बागेश्वर में बीती रात भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिससे दहशत फैल गई। भूकंप और प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे उत्तराखंड के लिए बुरा संकेत ये भी है कि कुछ दिन पहले ही उत्तरकाशी और हिमाचल से सटी उत्तराखंड बॉर्डर पर झटके महसूस किए गए थे। इस बार बागेश्वर और पिथौरागढ़ में भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। इन झटकों के बाद दहशत में लोग घरों से बाहर निकल आए। अच्छी खबर ये है कि फिलहाल कहीं से नुकसान की खबर नहीं है।रविवार की रात करीब 8:43 बजे भूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 3.5 मैग्नीट्यूड आंकी गई है। बड़ी बात ये भी है कि भूकंप का केंद्र पिथौरागढ़ रहा । सतह से 10 किमी नीचे भूकंप का केंद्र रहा। कपकोट और दुग नाकुरी तहसील में भूंकप के झटके महसूस किये गए। डीएम रंजना राजगुरु ने आपदा प्रबंधन टीमों को अलर्ट कर दिया है।

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कुछ दिन पहले ही उत्तरकाशई में भूकंप मबसूस किया गया था। पिछले 7 साल में उत्तरकाशी की धरती 18 बार कांप चुकी है, जिससे यहां के लोग बेहद डरे हुए हैं। हालांकि प्रकृति की तरफ से मिल रही चेतावनी को अनदेखा कर यहां बहुमंजिला इमारतों का निर्माण लगातार जारी है। ये अनदेखी आने वाले समय में बड़े हादसे का सबब बन सकती है। उत्तरकाशी जिला भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील जोन 4 और 5 में आता है। भूगर्भीय दृष्टी से ये सीमांत जिला बहुत संवेदनशील है। टैक्टोनिक प्लेट्स जिले के नीचे से होकर गुजर रही है, इनमें सामान्य हलचल होने पर भी भूकंप का खतरा बना रहता है। 20 अक्टूबर 1991 में उत्तरकाशी पहले भी भूकंप की तबाही से जूझ चुका है। उस वक्त यहां पर 6.8 तीव्रता वाला भूंकप आया था, जिसमें भारी तबाही हुई थी। भूकंप के दौरान 6 सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जबकि सैकड़ों मकान जमीन में समा गए थे।

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इससे पहले देहरादून के लिए भूकंप की चेतावनी भी दी जा चुकी है। जीपीएस के माध्यम से पता चला है कि ये पूरा भूभाग हर साल 18 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ता जा रहा है। इस सिकुड़न की वजह से धरती के भीतर ऊर्जा का का जबरदस्त भंडार बन रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ऊर्जा ही चिंता का सबसे बड़ा सबब है, जो कभी भी सात या फिर आठ रिक्टर स्केल के भूकंप के रूप में बाहर निकल सकती है। रिसर्च में बताया गया है कि इस पूरे क्षेत्र में बीते 500 से ज्यादा सालों से कोई शक्तिशाली भूकंप नहीं आया है। एक वक्त ऐसा भी आएगा, जब धरती की सिकुड़न आखिरी स्तर पर होगी। उस वक्त कहीं भी भूकंप के रूप में ये ऊर्जा बाहर निकलेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि नेपाल में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। वहां धरती हर साल 21 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ रही थी और इस वजह से साल 2015 में 7.8 रिक्टर स्केल का बड़ा भूकंप आया था।