उत्तराखंड story of ghughuti uttarakhand

पहाड़ की परंपरा का पक्षी, हम सभी के बचपन का साथी..जानिए घुघूती की दिल छू लेने वाली कहानी

घुघूती ना होती तो हमें भावनात्मक प्रेम से सींची कहानियां ना मिलतीं, प्रेम-अपनेपन से सराबोर लोकगीत ना मिलते...वीडियो भी देखिए

उत्तराखंड न्यूज: story of ghughuti uttarakhand
Image: story of ghughuti uttarakhand (Source: Social Media)

: हर पहाड़वासी को प्रकृति से प्रेम की शिक्षा विरासत में मिली है। तभी तो पहाड़, मौसम, पेड़-पौधे और पक्षी हमारे लोकगीतों का अभिन्न हिस्सा हैं। ऐसे लोकगीत जो कि सदियों से गाए जा रहे हैं। बात जब पहाड़ की होती है तो घुघूती पक्षी का जिक्र जरूर होता है। शहरों में तो ये पक्षी विरले ही देखने को मिलता है, पर पहाड़ में अब भी दिन की शुरुआत घुघूती की घुर-घुर से ही होती है। ये नन्हा मासूम सा पक्षी विवाहिताओं को उनके मायके की याद दिलाता है, साथ ही उनकी हर परेशानी-दुख में उनका साथी भी बनता है। हर पहाड़ी बच्चे के बचपन की शुरुआत घुघूती-बसुती लोरी के साथ ही होती है। इस तरह घुघूती हमारे जीवन के शुरू होने के साथ ही हमसे जुड़ जाती है। चलिए अब आपको घुघूती से जुड़ी लोककथा बताते हैं। घुघुती से जुड़े किस्से-कहानियों से पोथियां भरी पड़ी हैं। कहते हैं कि प्राचीन काल में एक भाई अपनी बहन से मिलने उसके ससुराल गया था। उस वक्त बहन सो रही थी। उसकी नींद में खलल डालना भाई को अच्छा नहीं लगा। बहन जागी नहीं तो भाई उसे सोता हुआ छोड़कर वापस लौट गया। जब बहन की नींद खुली तो उसने देखा कि घर में उसकी मां के बनाए पकवान और बाल मिठाई रखी है। बाद में आस-पास की औरतों ने बताया कि उसका भाई आया था लेकिन भूखे पेट चला गया।

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ये सुन बहन रोने लगी, वो सोचने लगी कि उसका भाई बिना खाना खाए लौट गया। इस दुख में उसने अपने प्राण त्याग दिए। कहते हैं यही बहन बाद में घुघूती बनी। आज भी घुघूती की आवाज में वही दर्द और पीड़ा झलकती है। कुमाऊं अंचल में मकर संक्रांति का त्योहार भी घुघूती त्योहार के तौर पर मनाया जाता है। घुघूती पहाड़ के सबसे लोकप्रिय लोकगीतों का हिस्सा है। फिर चाहे वो लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का गीत घुघूती घुरोण लगी म्यारा मैत की हो या फिर गोपाल बाबू गोस्वामी का गीत आम की डाई मा घुघूती नी बासा...घुघूती ना होती तो हमें भावनात्मक संबंधों को जोड़ने वाली कहानियां नहीं मिलतीं। प्यार और अपनेपन से पगे लोकगीत ना मिलते। घुघूती है तो हम हैं, इसीलिए पहाड़ को सहेंजे, पर्यावरण को सहेजें, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी घुघूती की आवाज सुन सकें...इसे देख सकें। पहाड़ी घुघूती का रूप कबूतर से काफी मिलता जुलता है। ये आकार में कबूतर से छोटी होती है। इसके पंखों में सफेद चित्तीदार धब्बे होते हैं। घुघूती का वैज्ञानिक नाम है डस्की ईगल आउल इसे स्पॉटेड डव भी कहा जाता है।

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