उत्तराखंड Pilgrims start reaching teerth of moksha bharamkapal

देवभूमि का ब्रह्मकपाल..पितरों की मोक्ष प्राप्ति का महातीर्थ, यहां पाप मुक्त हुए थे शिवजी

बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रहमकपाल को महातीर्थ कहा जाता है, पितृपक्ष में यहां पिंडदान-तर्पण का विशेष महत्व है...

Bharamkapal teerath: Pilgrims start reaching teerth of moksha bharamkapal
Image: Pilgrims start reaching teerth of moksha bharamkapal (Source: Social Media)

: पितृपक्ष शुरू होने के साथ ही देवभूमि के ब्रह्मकपाल तीर्थ में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है। श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करने के लिए दूर-दूर से ब्रह्मकपाल तीर्थ पहुंच रहे हैं। देवभूमि के चमोली में स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ का महात्मय बिहार के गया तीर्थ के समान बताया गया है। कहते हैं कि अलकनंदा के किनारे बसे इस तीर्थ पर पितरों का पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों में इस जगह का विशेष महत्व बताया गया है। उत्तराखंड का चमोली जिला बदरीनाथ धाम के साथ ही ब्रह्मकपाल तीर्थ के लिए भी मशहूर है। बदरीधाम के कपाट खुलने के साथ ही श्रद्धालु ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के लिए पहुंचने लगते हैं। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान यहां श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। इस धाम में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है।

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कहते हैं पूरी दुनिया में श्री बदरीनाथ धाम ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां ब्रह्मकपाल में पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है। इसीलिए इसे महातीर्थ यानि सर्वोच्च तीर्थ कहा गया है। यहां पिंडदान करने के बाद कहीं और पिंडदान और तर्पण करने की जरूरत नहीं रहती। स्कंदपुराण में लिखा है कि पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज और काशी श्रेष्ठ हैं, लेकिन भू-बैकुंठ बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे 8 गुना ज्यादा फलदायी है। पितृपक्ष में जो भी यहां पिंडदान करता है उसके पितरों को मोक्ष मिलता है साथ ही वंश की वृद्धि होती है। ब्रह्मकपाल वही जगह है, जहां भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। स्वर्गारोहिणी जाते वक्त पांडवों ने भी इसी जगह अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण किया था।