बागेश्वर: कोरोना संकट में गैर प्रांतों से घर लौटे प्रवासी अब गांव की माटी में रोजी-रोटी तलाश रहे हैं। ये एक अच्छा संकेत है। पलायन की वजह से जो गांव खाली हो गए थे, अब वहां रौनक दिखने लगी है। अब जरूरत है तो बस युवाओं को रोजगार के मौके देने की, ताकि वो पहाड़ में रहकर ही आजीविका कमा सकें। स्वावलंबन की ऐसी ही दिल छू लेने वाली एक तस्वीर बागेश्वर से सामने आई है। जहां पवन नाम का दिव्यांग युवक स्वरोजगार की मिसाल बन दूसरों के लिए प्रेरणा बन गया है। पवन ने गांव में सैलून खोला है, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। कांडे कन्याल गांव में रहने वाला पवन एक पैर से दिव्यांग है। गांव के दूसरे युवकों की तरह वो भी शहर में नौकरी करता था। लॉकडाउन लगा तो पवन गांव में ही रह गया। उसके साथ के लोग भी शहर से घर लौटने लगे। इसी दौरान पवन को पता चला कि सैलून बंद होने की वजह से लोगों को हेयर कटिंग और शेविंग कराने में परेशानी हो रही है। पवन को हेयर कटिंग में पहले से रुचि थी, लेकिन इस हुनर को तराशने का कभी मौका नहीं मिला था। लॉकडाउन के चलते ये मौका पवन के पास आया और इस तरह पवन ने गांव के लोगों के मुफ्त में बाल काटने शुरू कर दिए। पवन का काम लोगों को पसंद आने लगा। आगे पढ़िए
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काम बढ़ा तो पवन ने सिंलगदेव गांव के हरीश को भी अपने साथ जोड़ लिया। पवन ने हरीश को भी हेयर कटिंग का काम सिखाया। पवन के हुनर के बारे में व्यापार मंडल अध्यक्ष दीप वर्मा को पता चला तो वो खुद पवन से मिलने पहुंच गए। उन्होंने बागेश्वर में पवन का सैलून खोलने के लिए प्रेरित किया। पिछले महीने पवन ने कांडा पड़ाव कस्बे में अपना सैलून शुरू कर दिया। जहां उसने हरीश को भी रोजगार दिया है। पवन की मेहनत और हुनर से सैलून अच्छा चल रहा है। पवन को हर दिन 500 से 1000 रुपये तक की आमदनी हो रही है। पवन का कहना है कि शहर में धक्के खाने से अच्छा है कि गांव में सुकून की जिंदगी बिताई जाए। पवन की मेहनत और जज्बे की चारों तरफ तारीफ हो रही है। कोरोना संकट के चलते नौकरी गंवा चुके प्रवासियों के लिए पवन मिसाल बन गए हैं। पवन के गांव के प्रवासियों का कहना है कि अब हम वापस नहीं जाएंगे और गांव में ही रखकर रोजगार के अवसर तलाशेंगे। क्षेत्र के सामाजिक संगठन भी सरकार से प्रवासियों को पहाड़ में ही रोकने के लिए ठोस नीति बनाने की मांग कर रहे हैं।