उत्तराखंड चमोलीChamoli shila samudra glacier

गढवाल में फिर मिल रहे हैं तबाही के संकेत, शिलासमुद्र ग्लेशियर ने बढ़ाई वैज्ञानिकों की चिंता

शिलासमुद्र ग्लेशियर भी अब खतरे की जद में है। अगर प्रदेश में बड़ा भूकंप आता है और यह शिलासमुद्र ग्लेशियर फट जाता है तो बड़ी त्रासदी का अनुमान लगाया जा रहा है। Chamoli Disaster: Chamoli shila samudra glacier

Chamoli Disaster: Chamoli shila samudra glacier
Image: Chamoli shila samudra glacier (Source: Social Media)

चमोली: चमोली में बीते रविवार को जो आपदा आई उससे समस्त उत्तराखंड अब तक सदमे में है। इसी बीच एक और बुरी खबर सामने आई है। चमोली जिले में नंदाकिनी नदी के किनारे शिलासमुद्र ग्लेशियर भी अब खतरे की जद में है। जी हां, बताया जा रहा है कि शिलासमुद्र के ठीक नीचे ग्लेशियर की तलहटी पर दो छेद हैं और उसके आसपास दरारे हैं जो कभी भी कहर बरपा सकती हैं। जानकारों की मानें तो अगर उत्तराखंड में बड़ा भूकंप आता है और यह शिलासमुद्र ग्लेशियर फट जाता है तो कई शहरों का नामोनिशान तक मिट सकता है और उत्तराखंड में एक बड़ी तबाही आ सकती है। नंदाकिनी नदी के किनारे शिलासमुद्र ग्लेशियर पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम हिस्सा है। इस ग्लेशियर में दुर्लभ प्रकार के जीव जंतु भी पाए जाते हैं और यह लगभग 8 किलोमीटर के परिक्षेत्र में फैला हुआ है जो गढ़वाल हिमालय के इकोसिस्टम में भी एक अहम भूमिका निभाता है।

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आपको बता दें कि इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग में सैकड़ों टनो के हजारों पत्थरों की भरमार है और इसकी तलहटी में पिछले कुछ सालों से एक बहुत बड़ा गोलाकार छेद बन रहा है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। तीर्थ यात्रियों की मानें तो पहले ग्लेशियर की तलहटी पर बना यह क्षेत्र काफी छोटा था और वर्तमान में इसका आकार काफी बड़ा हो गया है। ऐसे में अगर उत्तराखंड में बड़ा भूकंप आता है और यह ग्लेशियर फट जाता है तो उत्तराखंड में जो त्रासदी आएगी उसके बारे में हम में से कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता। पहले इस ग्लेशियर के नीचे सिर्फ एक छेद बना हुआ था लेकिन अब पहले वाले छेद के अंदर ही कुछ दूरी पर एक दूसरा छेद बन गया है और इन के ऊपर आसपास बड़ी-बड़ी दरारें भी पड़ गई हैं। ऐसे में उसको नजरअंदाज करना बेहद भारी पड़ सकता है और इससे भविष्य में आने वाले खतरे की आहट से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण के एक्सपर्ट्स इसको खतरे की घंटी बता रहे हैं।

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एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रोफेसर मोहन पंवार का कहना है कि उच्च हिमालई क्षेत्रों में हल्के भूकंप ग्लेशियर के लिए खतरनाक हैं और गढ़वाल हिमालय अभी अपनी बाल्यावस्था में है। इसकी सतह काफी कमजोर है। यदि समय रहते हमने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना और वनों को काटना बंद नहीं किया तो परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। धरती के तापमान में बढ़ोतरी होने से और ग्लेशियरों के पिघलने में कुछ दशकों में काफी तेजी आई है। ऐसे में शिला समुद्र ग्लेशियर भी खतरे की जद में है और अगर यह भविष्य में ग्लेशियर फटता है तो नंदप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक कई शहरों का नामोनिशान मिट सकता है और उत्तराखंड में बड़ी त्रासदी आ सकती है।