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चमोली आपदा: क्यों बनते हैं ग्लेशियर और क्यों टूटते हैं? 2 मिनट में जान लीजिए

जानिए ग्लेशियर क्या होते हैं, यह कैसे बनते हैं और कैसे मानव के हस्तक्षेप से यह तेजी से टूट रहे हैं और त्रासदी मचा रहे हैं। पढ़िए ग्लेशियर से संबंधित समस्त जानकारी- Chamoli Disaster: All you need to know about glacier

Chamoli Disaster: All you need to know about glacier
Image: All you need to know about glacier (Source: Social Media)

चमोली: चमोली में जो हुआ वह बेहद दिल दहला देने वाला था। उत्तराखंड के चमोली जिले में बीते रविवार की सुबह 10 बजे ग्लेशियर टूटकर धौली नदी में गिर गया और बाढ़ जैसे हालात उत्पन्न हो गए। तपोवन इलाके के रैणी गांव में में धौली नदी का स्तर अचानक ही बढ़ गया और वह उफान पर आ गई। इस पूरी आपदा में कई मजदूर लापता हो गए हैं और ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के साथ ही भारी आर्थिक नुकसान भी हुआ है। ग्लेशियर के टूटने से यह हादसा हुआ। चलिए आपको बताते हैं कि ग्लेशियर होते क्या हैं और यह कैसे टूटटे हैं। ग्लेशियर को हिंदी में हिमनद कहते हैं। ग्लेशियर बर्फ की नदी होती है जिसका पानी ठंड के कारण जम जाता है। जब यह ग्लेशियर टूट जाते हैं तो नदी का स्तर खुद-ब-खुद बढ़ जाता है और बाढ़ जैसे हालात तक उत्पन्न हो जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में ग्लेशियर का टूटना और भी अधिक खतरनाक माना जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि पहाड़ियों पर पानी का बहाव काफी तेज होता है और ऐसी स्थिति तबाही ला सकती है। नदी अपनी तेज बहाव के साथ हर चीज को तबाह करते हुए चलती है।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ग्लेशियर पृथ्वी पर पानी का सबसे बड़ा सोर्स हैं और कई नदियों का जलस्तर ग्लेशियर के वजह से ही बढ़ता रहता है और ग्लेशियर का टूटना गंभीर आपदा को निमंत्रण देता है।

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ग्लेशियर अमूमन दो प्रकार के होते हैं। अल्पाइन ग्लेशियर और ग्लेशियर का पहाड़। ग्लेशियर का पहाड़ ऊंचे पर्वतों के पास घाटी की ओर बहते हैं। बीते रविवार को चमोली में जो हादसा हुआ वह ग्लेशियर के पहाड़ के टूटने से हुआ। पहाड़ी ग्लेशियर सबसे ज्यादा खतरनाक माने जाते हैं। ग्लेशियर वहां पर बनते हैं जहां पर काफी अधिक ठंड होती है और हर साल बर्फ जमा होती रहती है और एक बड़े पहाड़ पर तब्दील हो जाती है। मौसम बदलने पर यह बर्फ पिघलती है और यही नदियों का मुख्य स्त्रोत माना जाता है। वहीं अल्पाइन ग्लेशियर में हल्के क्रिस्टल जैसे बर्फ के गोले ग्लेशियर में बदलने लगते हैं और बर्फबारी होने से ग्लेशियर नीचे दबाने लगते हैं और कठोर हो जाते हैं। ठोस बर्फ की बहुत विशाल मात्रा जमा हो जाती है और बर्फबारी के कारण पड़ने वाले दबाव से ग्लेशियर खुद-ब-खुद पिघलने लगता है और यह हिमनद का रूप लेकर घाटियों की ओर बहने लगता है। यह तब खतरनाक रूप धारण कर लेता है जब यह हिमस्खलन में तब्दील हो जाता है। चमोली घाटी में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उसके रास्ते में जो भी कुछ आता है वह सब तबाह हो जाता है

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धौली नदी में ग्लेशियर पानी के साथ मिल गया और विनाशकारी रूप धारण कर लिया। पानी के साथ मिलते ही ग्लेशियर टाइड वॉटर ग्लेशियर बन जाते हैं जोकि बेहद खतरनाक होते हैं और बर्फ के टुकड़े पानी में तैरने लगते हैं। इससे नदी के पानी का बहाव और स्तर बढ़ जाता है और वह विनाशकारी परिस्थितियां उत्पन्न कर सकता है। आपको बता दें कि ग्लेशियर हमेशा धीरे-धीरे नीचे की ओर सरकते रहते हैं। ग्लेशियर में कई बार बड़ी दरारे पड़ती हैं जो कि ऊपर से बर्फ की पतली परत से ढकी हुई होती है। यदि कभी भूकंप या कंपन होता है तो चोटियों पर जमा हुई यह बर्फ खिसक कर धीरे-धीरे नीचे आने लगती है और इससे ग्लेशियर टूट जाते हैं। ग्लेशियर के पिघलने का सबसे बड़ा कारण है ग्लोबल वॉर्मिंग। जी हां, पश्चिम अंटार्टिका में एक ऐसा ग्लेशियर है जिसकी बर्फ बेहद तेजी से पिघल रही है और समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। प्रकृति बार-बार मनुष्यों को चेतावनी दे रही है मगर मनुष्य अपने फायदे के लिए प्रकृति का हनन कर रहा है तो ऐसे में प्रकृति भी अपना रौद्र रूप समय-समय पर दिखा रही है और ऐसी आपदाएं आ रही हैं। यह आपदाएं प्राकृतिक जरूर है मगर इसमें कहीं ना कहीं मानव का भी हस्तक्षेप है। ग्लेशियर पिघलने का कारण दुनिया में कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों के काफी अधिक मात्रा में उत्सर्जन भी है। इसी के साथ कारखाने भी इन गैसों का उत्सर्जन करते हैं जिससे धरती का तापमान बढ़ता है और इसी कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं।