उत्तराखंड टिहरी गढ़वालTota Singh Rangad had prepared the road in Totaghati

गढ़वाल: ठेकेदार तोताराम रांगड़, 90 साल पहले इस शख्स ने तोड़ा था तोताघाटी का गुरूर

जिस तोताघाटी की विशालकाय चट्टानों के सामने अत्याधुनिक मशीनें भी फेल साबित रही हैं, उसे ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ ने 90 साल पहले सिर्फ सब्बल और रस्सी की मदद से चुनौती देने का साहस दिखाया था।

Tota Singh Rangad: Tota Singh Rangad had prepared the road in Totaghati
Image: Tota Singh Rangad had prepared the road in Totaghati (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: देवप्रयाग की तोताघाटी। इसे ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे का नासूर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इंजीनियरों के लिए चुनौती बनी ये घाटी वाहन चालकों के लिए भी बुरे सपने से कम नहीं है। देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग और चमोली जाने वाले वाहन इसी घाटी से होकर गुजरते हैं, लेकिन यहां आवाजाही करना आसान नहीं है। भूस्खलन से प्रभावित ये इलाका वाहनों की आवाजाही के लिए अक्सर बंद रहता है, जिस वजह से वाहन चालक और यात्री परेशान रहते हैं, लेकिन आज हम आपको तोताघाटी के दूसरे पहलूओं के बारे में बताएंगे। इसका नाम तोताघाटी कैसे पड़ा और वो कौन था, जिसने 90 साल पहले इस घाटी का गुरूर तोड़कर यहां पहली बार सड़क तैयार की थी, उस शख्स के बारे में भी जानेंगे।

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तोताघाटी में जिस शख्स ने पहली बार सड़क बनाने का साहस दिखाया था, उनका नाम है ठेकेदार तोता सिंह रांगड़। प्रतापनगर के रहने तोता सिंह ने यहां चट्टान काटने के लिए अपनी सारी जमापूंजी खर्च कर दी थी, पत्नी के जेवर तक बेच दिए थे। उनकी इस जीवटता से खुश होकर टिहरी रियासत के तत्कालीन राजा नरेंद्र शाह ने घाटी का नाम तोताघाटी रखने के आदेश दिए थे। वर्तमान में तोताघाटी में ऑलवेदर रोड का काम चल रहा है। 7 महीने तक पसीना बहाने के बाद एनएच यहां जैसे-तैसे हाईवे खोल पाया है। जिस तोताघाटी की विशालकाय चट्टानों के सामने अत्याधुनिक मशीनें भी फेल साबित रही हैं, उसे ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ ने 90 साल पहले सिर्फ सब्बल और रस्सी की मदद से चुनौती देने का साहस दिखाया था।

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तोता सिंह के नाती मेहरबान सिंह रांगड़ बताते हैं कि टिहरी के राजा ने उनके दादा को चांदी के 50 सिक्के देकर सड़क काटने को कहा था। जिसके बाद तोता सिंह 50 ग्रामीण लेकर चट्टान काटने निकल पड़े। इस काम में 70 हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए। साल 1931 में काम शुरू हुआ। 1935 में जब सड़क बनकर तैयार हो गई तो दादा ने राजा से कहा कि उन्हें इस काम में भारी नुकसान हुआ है। इस पर राजा नरेंद्र शाह ने उनके दादा को न सिर्फ जमीन दान दी, बल्कि घाटी का नामकरण भी उनके नाम पर कर दिया। राजा ने उनके दादा को लाट साहब की उपाधि दी थी। तोता सिंह के स्वजनों का कहना है कि तोताघाटी में तोता सिंह की प्रतिमा लगाई जानी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को सड़क निर्माण में उनके योगदान के बारे में पता चल सके।