उत्तराखंड रुद्रप्रयागStory of bhukunt bhairav kedarnath

केदारनाथ के पहले रावल हैं भुकुंट भैरव, आज भी करते हैं केदारपुरी की रक्षा

केदारनाथ के पहले रावल भुकुंट भैरव(bhukunt bhairav kedarnath) करते हैं केदारनाथ मंदिर की रखवाली, इनके दर्शन किए बगैर अधूरी है केदारनाथ यात्रा

Kedarnath bhukunt bhairav: Story of bhukunt bhairav kedarnath
Image: Story of bhukunt bhairav kedarnath (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: देवों की भूमि कहलाए जाने वाले उत्तराखंड में हर वर्ष सैकड़ों लोग बाबा केदारनाथ की यात्रा के लिए आते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि केदारनाथ यात्रा काल भैरव जी (bhukunt bhairav kedarnath) के दर्शन किए बगैर अधूरी मानी जाती है। जी हां, हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार देश में जहां-जहां पर भी भगवान शिव का सिद्ध मंदिर है वहां-वहां पर काल भैरव जी के मंदिर की है और इन मंदिरों के दर्शन किए बगैर भगवान शिव के दर्शन करना अधूरा माना जाता है। काशी के बाबा विश्वनाथ हों या उज्जैन के बाबा महाकाल, केदारनाथ से लेकर अमरनाथ तक.. हर जगह सभी श्रद्धालु महादेव के साथ ही काल भैरव जी के दर्शन भी करते हैं। भगवान शिव के दर्शन के बाद भुकुंट भैरव के दर्शन करने के बाद ही तीर्थ यात्रा पूर्ण मानी जाती है।
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  • महाभैरव की महागाथा

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    केदारनाथ धाम की बात करें तो केदारनाथ में भी भुकुंट भैरव नाथ का मंदिर मौजूद है और हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले भैरव मंदिर में पूजा पाठ की जाती है। भीषण भैरव, संहार भैरव, बटुक भैरव आदि अनेक नामों के साथ वे महादेव के साथ वास करते हैं और केदारनाथ में बिना भुकुंट भैरव के दर्शन के यात्रा पूर्ण नहीं होती है। बता दें कि बाबा भैरव केदारनाथ क्षेत्र के क्षेत्र पाल देवता हैं और बाबा केदार के पहले रावल हैं।

  • शीतकाल में रक्षा करते हैं भैरव

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    शीतकाल प्रवास में क्षेत्र की रक्षा का जिम्मा भुकुंट भैरव के हिस्से आता है और बाबा केदारनाथ के कपाट खोलने से पहले हमेशा भुकुंट भैरव की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भुकुंट बाबा केदारनाथ के पहले रावल थे और उनका मंदिर केदारनाथ मंदिर के दक्षिण में स्थित है। मुख्य केदारनाथ मंदिर से इसकी दूरी लगभग आधा किलोमीटर दूर है। बाबा केदारनाथ की पूजा से पहले भुकुंट बाबा की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है और उसके बाद ही परंपरागत तरीकों से बाबा केदारनाथ के कपाट खोले जाते हैं।

  • केदारनाथ के पहले रावल

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    कहा तो यह भी जाता है कि कुछ साल पहले हुए पुरोहितों से पूजा पाठ में कुछ कमी रह गई थी जिस कारण केदारनाथ मैं भीषण आपदा आई थी। स्थानीय लोग यही बताते हैं कि 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन के कुछ लोगों को कपाट बंद करने में काफी परेशानी हुई थी।

  • माने जाते हैं जागृत देवता

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    कपाट के कुंडे लगाने में दिक्कत हो रही थी जिसके बाद पुरोहितों ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल भुकुंट भैरव की पूजा की और कुछ समय के बाद कपाट बिना दिक्कत के बंद हो गया। मान्यता है कि शीतकाल में केदारनाथ मंदिर की रखवाली बटुक भैरव करते हैं।