उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालShambhu Prasad of Pauri Garhwal is earning lakhs of rupees from farming

गढ़वाल: शहर छोड़ अपने गांव लौटे शंभू नौगाईं, खेती-पशुपालन और शुद्ध घी से हो रही लाखों में कमाई

शंभू प्रसाद नौगांई ने पशुपालन और खेती को रोजगार का साधन बनाया। आज वो हर महीने करीब 30 से 35 किलो घी बेचते हैं, जिससे उन्हें लाखों की आमदनी हो रही है।

Pauri Garhwal Shambhu Prasad: Shambhu Prasad of Pauri Garhwal is earning lakhs of rupees from farming
Image: Shambhu Prasad of Pauri Garhwal is earning lakhs of rupees from farming (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: पलायन के लिए बदनाम उत्तराखंड के युवा अब स्वरोजगार के जरिए सफलता का सफर तय कर रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाल ब्लॉक में रहने वाले शंभू प्रसाद नौगांई ऐसे ही युवाओं में से एक है।

Pauri Garhwal farmer Shambhu Prasad Naugain

शंभू प्रसाद नौगांई ने पशुपालन और खेती को रोजगार का साधन बनाया। आज वो हर महीने करीब 30 से 35 किलो घी बेचते हैं। पशुपालन के अलावा शंभू प्रसाद खेती के जरिए भी अच्छी कमाई कर रहे हैं। वो मौसमी फसलों से भी एक से दो लाख रुपये वार्षिक कमाई कर लेते हैं। पहाड़ में इन दिनों खेती को घाटे का सौदा माना जाने लगा है। लोग खेती के साथ-साथ पशुपालन से भी दूरी बना रहे हैं और रोजगार की तलाश में महानगरों में बस रहे हैं, लेकिन अगर खुद पर भरोसा हो तो किसी भी मुश्किल को हराया जा सकता है। शंभू प्रसाद का जीता जागता उदाहरण हैं। उनका बनाया घर का शुद्ध पहाड़ी घी खाने में जायका बढ़ाने के साथ ही कमाई भी खूब कर रहा है।

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38 साल के शंभू प्रसाद का परिवार बंगर जल्ला गांव में रहता है। दूसरे पहाड़ियों की तरह वो भी पहले दिल्ली में जॉब करते थे, लेकिन 4 साल पहले शंभू पशुपालन और किसानी के लिए जॉब छोड़कर गांव चले आए। यहां उन्होंने पशुपालन और फलोत्पादन को रोजगार का जरिया बनाया। आज क्योंकि बाजारों में ऑर्गेनिक उत्पादों की बहुत डिमांड है, ऐसे में शंभू के बनाए शुद्ध पहाड़ी घी को लोगों ने हाथों हाथ अपनाया। शंभू हर महीने में 30 से 35 किलो भैंस के दूध का शुद्ध घी तैयार करते हैं। उन्होंने शुद्ध घी व्यवसाय में तीन लाख तक वार्षिक की कमाई का रिकॉर्ड भी बनाया है। जिसके लिए उन्हें ब्लॉक स्तर पर सम्मानित भी किया गया था। शंभू कहते हैं कि पहाड़ में विपणन की सही व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि किसानों को उत्पाद का सही रेट मिल सके। सरकारी मशीनरी की उदासीनता टूट जाए तो पहाड़ी क्षेत्रों के उत्पादों की बिक्री को और बढ़ाया जा सकता है।