उत्तराखंड बागेश्वरStory of farmer Kishan Rana of Bageshwar

बागेश्वर के किशन राणा ने खेती से संवारी किस्मत, शानदार हो रही है कमाई

पीएचडी करने के बाद डॉ. किशन के पास सरकारी नौकरी करने का ऑप्शन था, लेकिन उन्होंने सरकारी नौकरी या शहर जाने की बजाय पहाड़ में ही रहने का फैसला किया।

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Image: Story of farmer Kishan Rana of Bageshwar (Source: Social Media)

बागेश्वर: मन में इच्छाशक्ति हो तो मिट्टी में भी सोना उगाया जा सकता है।

Story of farmer Kishan Rana of Bageshwar

बागेश्वर के गरुड़ क्षेत्र में रहने वाले डॉ. किशन राणा यही कर रहे हैं। उनकी गिनती जिले के प्रगतिशील काश्कारों में होती है। वो सब्जी उत्पादन के जरिए दूसरों के लिए स्वावलंबन की मिसाल बनकर उभरे हैं। डॉ. किशन राणा रिठाड़ गांव के रहने वाले हैं। पीएचडी करने के बाद उनके पास सरकारी नौकरी करने का ऑप्शन था, लेकिन उन्होंने सरकारी नौकरी की ओर मुंह ताकने और मैदान की ओर पलायन करने के बजाय उत्तराखंड में रहकर ही कुछ करने की ठानी। वो फावड़ा और कुदाली लेकर खेतों में पहुंच गए और बागवानी और सब्जी उत्पादन को रोजगार का जरिया बनाया। इस सीजन में उन्होंने अब तक करीब चार सौ क्विंटल कद्दू बेचे हैं। जिससे उन्हें 40 रुपये प्रति किलो की दर से करीब 16 हजार का मुनाफा हुआ है। आगे पढ़िए

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इसके अलावा उनके खेतों व पालीहाउस में शिमला मिर्च, बींस, टमाटर, करेला, लौकी, बैंगन आदि सब्जियां भी तैयार हो रही हैं। डॉ. किशन सिंह राणा लोगों को खेती-किसानी से जोड़ने के लिए हर साल किरसाण प्रतियोगिता भी आयोजित करते हैं। मेहनती महिलाओं और पुरुषों का हौसला बढ़ाने के लिए उन्हें सम्मानित भी करते हैं। डॉ. किशन सिंह राणा कहते हैं कि पहाड़ में खेती को जंगली जानवरों का खतरा तो है, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति से हर चुनौती पर जीत हासिल की जा सकती है। पलायन को हराना है तो हमें पहाड़ और खेती को बचाना होगा, यहां रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे। नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकने की बजाय युवा पीढ़ी को अपनी शक्ति पहचानने और स्वयं आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। उद्यान विभाग को भी लोगों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।