उत्तराखंड अल्मोड़ाBishni Devi Sah Uttarakhand First Woman Freedom Fighter

उत्तराखंड की पहली महिला आंदोलनकारी, जो आजादी की लड़ाई के दौरान जेल गई

वो साधारण परिवार की अल्पशिक्षित महिला थी, लेकिन भारत के स्वाधीनता संग्राम को उनके द्वारा दिया गया योगदान असाधारण है।

bishni devi sah: Bishni Devi Sah Uttarakhand First Woman Freedom Fighter
Image: Bishni Devi Sah Uttarakhand First Woman Freedom Fighter (Source: Social Media)

अल्मोड़ा: हाल ही में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उत्तराखंड आई थीं।

Bishni Devi Sah Uttarakhand First Woman Freedom Fighter

उत्तराखंड प्रवास को पूरा करने के बाद उन्होंने एक ट्वीट किया..इस ट्वीट में उस महिला का जिक्र था, जिसे उत्तराखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है। राष्ट्रपति ने ट्वीट किया ‘वो साधारण परिवार की अल्पशिक्षित महिला थी, लेकिन भारत के स्वाधीनता संग्राम को उनके द्वारा दिया गया योगदान असाधारण है। इस ट्वीट के साथ ही उत्तराखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी का स्वाधीनता आंदोलन में योगदान राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में आ गया है। भारत में आज भी कई ऐसे गुमनाम नायक नायिकाएं हैं, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। कई नामं ऐसे हैं जो भारत को आजादी दिलाते दिलाते अतीत के पन्नों में कहीं खो गए। उन नायक, उन नायिकाओं की कहानियां ऐसी हैं कि अंतर्मन को झकझोर देती हैं। इन्हीं में से एक नायिका थी उत्तराखंड के अल्मोड़ा की बिशनी देवी साह…बिशनी देवी साह उत्तराखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं. आजादी की लड़ाई में जेल जाने वालीं वो पहली महिला भी रही. प्यार से लोग उन्हें बिशू बूबू कहते थे।

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बिशनी देवी का जन्म 12 अक्टूबर 1902 को बागेश्वर में हुआ था। बिशनी देवी ने बागेश्वर में ही कक्षा चार तक की शिक्षा ग्रहण की। 13 साल की उम्र में बिशनी देवी की शादी अल्मोड़ा के अध्यापक रामलाल के साथ हुई। 16 साल की उम्र में पति का निधन हुआ, तो मायके और ससुराल वालों ने उन्हें ठुकरा दिया। पति की मौत के बाद बिशनी देवी अपने भाई साथ अल्मोड़ा में रहने लगी। धीरे धीरे बिशनी देवी का झुकाव आजादी के आंदोलनों की तरफ होने लगा। 1921 में बिशनी देवी भी राष्ट्रीय आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से कूद पड़ीं। धीरे धीरे बिशनी देवी लोक पर्वों पर देशप्रेम पर आधारित गीत गाने लगीं। उनकी सक्रियता को देखते हुए 1930 में पहली बार गिरफ्तार किया गया। अल्मोड़ा जेल से रिहाई के बाद वह गांव-गांव महिलाओं को संगठित करने लगी। वो आंदोलनकारियों के लिए धन संग्रह करतीं और गुप्त रूप से जरूरी सामग्री मुहैया करातीं। 1932 में बिशनी देवी को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। 1932 में ही एक बार फिर से उन्हें गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल रखा गया। बार बार गिरफ्तारी के बाद साहस में कमी नहीं आई। 29 मई 1933 को उन्हें रिहा कर दिया गया। 1945 में जब जवाहर लाल नेहरु अल्मोड़ा कारागार से रिहा हुए तो बिशनी देवी उन्हें लेने के लिए कारागार के मुख्य द्वार पर गई और सरकारी अफसरों पर कटाक्ष किया। वो लगातार स्वाधीनता के आंदोलनों में सक्रिय रही। 1974 में 93 साल की आयु में लोगों की प्यारी बिशू बूबू यानी बिशनी देवी साह का देहांत हो गया। कहा जाता है कि उस दौरान शव यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे। उत्तराखंड में महिला समाज में राजनीतिक चेतना, महिलाओं के संगठित करने, सामाजिक सांस्कृतिक अधिकारों के प्रति प्रेरित करने का श्रेय बिशनी देवी को जाता है। ये ही वजह है कि देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दी। राज्य की इस महिला स्वतंत्रता सेनानी को शत शत नमन