उत्तराखंड नैनीतालUttarakhand Shubham Badhani horse Library

उत्तराखंड के शुभम बधानी के इस बेमिसाल काम को सलाम, गांव-गांव पहुंच रही घोड़ा लाइब्रेरी

शुभम और उनके साथी घोड़ा लाइब्रेरी के जरिए पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के घर तक पुस्तकें पहुंचा रहे हैं, ताकि वो शिक्षा से जुड़े रहें।

Nainital Shubham Badhani horse Library: Uttarakhand Shubham Badhani horse Library
Image: Uttarakhand Shubham Badhani horse Library (Source: Social Media)

नैनीताल: किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं और उत्तराखंड के नैनीताल के शुभम बधानी छात्रों को इसी खास दोस्त से मिलाने की मुहिम में जुटे हैं।

Nainital Shubham Badhani horse Library

शुभम ने चलती-फिरती घोड़ा लाइब्रेरी शुरू की है। जो कि आपदा के वक्त में बच्चों के लिए बड़ा सहारा है। शुभम और उनके साथी घोड़ा लाइब्रेरी के जरिए दूरस्थ गांवों में पहुंच रहे हैं और वहां रहने वाले बच्चों को किताबें बांट रहे हैं। शुभम के इस प्रयास में अभिभावक भी सहयोग कर रहे हैं। घोड़ा लाइब्रेरी को बच्चे खूब पसंद कर रहे हैं। मानसून काल में पहाड़ी इलाके मुख्यालय से अलग-थलग पड़ जाते हैं। इसे देखते हुए हिमोत्थान द्वारा संकल्प यूथ फाउंडेशन संस्था की मदद से कोटाबाग विकासखंड के गांव बाघनी, जलना, महलधुरा, आलेख, गौतिया, ढिनवाखरक, बांसी में बच्चों तक बाल साहित्यिक पुस्तकें पहुंचाई जा रही हैं। घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत गर्मियों की छुट्टियों में हुई थी, तब से अब तक यह पहाड़ के बच्चों के लिए एक संजीवनी का काम कर रही है।

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गांव में रहने वाले शुभम और उनके साथी घोड़ा लाइब्रेरी के जरिए पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के घर तक पुस्तकें पहुंचा रहे हैं, ताकि वो शिक्षा से जुड़े रहें। शुभम बताते हैं कि कुछ दिनों पूर्व तक वो बाइक के जरिए गांवों तक किताबें पहुंचा रहे थे, लेकिन बीते दिनों हुई मूसलाधार बारिश के बाद सड़कें पूरी तरह बंद हो गईं, जिसके बाद उन्होंने घोड़ा लाइब्रेरी शुरू की है। घोड़ा लाइब्रेरी ऐसी लाइब्रेरी है, जिसके कदम पहाड़ों की चढ़ाई में भी निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे। शुरुआती चरण में ग्रामसभा जलना निवासी कविता रावत एवं बाधानी निवासी सुभाष बधानी को इस मुहिम से जोड़ा गया। धीरे-धीरे गांव के अन्य युवा और स्थानीय अभिभावक भी इस मुहिम से जुड़ गए और घोड़ा लाइब्रेरी के लिए हरसंभव सहयोग दे रहे हैं। आज के वक्त में जब लोग अपने बच्चों को मोबाइल-लैपटॉप थमाकर उनकी क्रिएटिविटी खत्म कर रहे हैं, ऐसे वक्त में शुभम जैसे युवाओं की कोशिश वाकई सराहनीय है।