उत्तराखंड देहरादूनUttarakhand makrain tyohar

देवभूमि में मकरैण के साथ त्योहारों की शुरुआत..गढ़वाल में गिंदी, कुमाऊं में घुघुतिया..जानिए

उत्तराखंड की परंपरा, संस्कृति को जानने की कोशिश कीजिए। मकरैण के साथ ही देवभूमि में त्योहारों का दौर शुरू हो जाएगा।

उत्तराखंड: Uttarakhand makrain tyohar
Image: Uttarakhand makrain tyohar (Source: Social Media)

देहरादून: उत्तराखंड में मकर संक्रांति के साथ ही त्योहारों और मेलों की शुरुआत हो जाएगी। मकर संक्रांति के मौके पर गढ़वाल और कुमांऊ में जगह-जगह कौथिग का आयोजन किया जाएगा। मेलों की तैयारियां अंतिम चरण में है। पौड़ी में आयोजित होने वाला गेंदी कौथिग यहां की विशेष पहचान है। आधुनिकता के साथ मेलों का पारंपरिक स्वरूप भले ही बदल गया है, लेकिन इसे लेकर लोगों का उत्साह आज भी देखते ही बनाता है।जीवन की भागदौड़ के बीच लोग अपनी प्राचीन संस्कृति और परंपराओं से कटते जा रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड में पारंपरिक त्योहारों को लेकर आज भी लोगों में जबर्दस्त उत्साह देखने को मिलता है। मकर संक्रांति को यहां मकरैण या खिचड़ी सगरांद के तौर पर जाना जाता है। इस दिन गढ़वाल के अलग-अलग इलाकों में गिंदी मेले का आयोजन किया जाएगा। यमकेश्वर, डाडामंडी जैसी जगहों में इस खेल को लेकर लोगों का उत्साह आज भी देखते ही बनता है।

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राज्य के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बच्चे कौओं को 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले' कह कर आटे के बने घुघते खिलाते हैं। ये त्योहार मनुष्य को प्रकृति और उसे सहेजने वाले हर जीव का सम्मान करने की सीख देता है। एक वक्त था जब पहाड़ों में होने वाले कौथिग में आस-पास के दस किलोमीटर के दो दर्जन से ज्यादा गांव के लोग इकट्ठे हुआ करते थे। महिलाएं इस मौके का विशेष तौर पर इंतजार करती थीं, क्योंकि यही एक मौका होता था, जब वो अपने घरों से निकल कर मेले में अपने मायके वालों से मिल पाती थीं। उनसे मायके का हाल-समाचार पूछतीं थी। समय बदलने के साथ संचार सेवाओं ने लोगों के बीच दूरी खत्म कर दी है। लोग एक-दूसरे से जुड़ गए हैं, लेकिन इन त्योहारों में जो अपनापन है वो आज भी बना हुआ है और हमें हमारी परंपराओं से जोड़े रखता है।