: याद कीजिए पहाड़ में बिताए हुए वो दिन, जो आपकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत दिन हुआ करते थे। हिसालू-किलमोड़े, काफल तोड़ते-बीनते दिन कब गुजर जाता था, पता ही नहीं चलता था। आज पहाड़ की जो दुर्दशा है, वो किसी से छिपी नहीं है। घर-पुंगड़े उजाड़ हो गए हैं, उरख्यली-गंज्याली अब भी अपनों के आने की बाट जोह रही, जंदेरू टूटे घर के कोने में पड़ा उन हाथों का इंतजार कर रहा है, जो उसे प्यार से...अपनेपन से चलाया करते थे। हिमालय की बर्फ पिघलने लगी है, लेकिन पहाड़ियों से एक बार पहाड़ जो छूटा तो फिर छूट ही गया। पलायन की पीड़ा पहाड़ और पहाड़ियों से बेहतर भला कौन समझ सकता है। शुक्र है कि अब पहाड़ को जनप्रतिनिधियों और अफसरों के रूप में ऐसे लाल मिले हैं, जो कि पहाड़ से पलायन को खत्म करने के लिए साथ खड़े हैं। सांसद अनिल बलूनी ने पहाड़ से पलायन खत्म करने के लिए एक अभियान शुरू किया है, जिससे एनएसए अजीत डोभाल, बिपिन रावत और कोस्ट गार्ड के डीजी राजेंद्र सिंह जुड़ गए हैं।