...और आज हम इतिहास बनते देख रहे हैं, प्रदीप लिंग्वाण की कलम से
इतिहास ऐसे ही तो बनता है। उस वक्त ऐसा ही तो हुआ होगा। बस वक्त मीडिया कैमरा, लाइट नही थे, तो उन्होंने गीत, जागर, पँवाड़े, चौपाई, गद्य, पद्य में इतिहास आने वाली पीढ़ी को बताया। पढ़िए प्रदीप लिंग्वाण का ब्लॉग