उत्तराखंड अल्मोड़ाbhaskar joshi teacher who changed education system

पहाड़ के इस सरकारी स्कूल के आगे फेल हैं शहर के मॉर्डन स्कूल, एक शिक्षक की मेहनत को सलाम

बजेला गांव के लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे, बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए भास्कर को बहुत संघर्ष करना पड़ा...

bhaskar joshi: bhaskar joshi teacher who changed education system
Image: bhaskar joshi teacher who changed education system (Source: Social Media)

अल्मोड़ा: पहाड़ में स्कूलों के हाल किसी से छिपे नहीं हैं। कहीं स्कूल भवन नहीं है, तो कहीं भवन तो है, पर शिक्षक नहीं। सच तो ये है कि आज भी ज्यादातर शिक्षक पहाड़ के स्कूलों में टिकने की बजाय मैदान की दौड़ में ज्यादा व्यस्त रहते हैं। ऐसे दौर में भी कुछ शिक्षक हैं जो कि बदहाल शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर को बदलने में जुटे हैं, ये शिक्षक ही पहाड़ के भविष्य की उम्मीद हैं। इन्हीं शिक्षकों में से एक हैं भास्कर जोशी। वही भास्कर जोशी जिन्हें कुछ महीने पहले केंद्र सरकार ने नवाचारी अवॉर्ड से सम्मानित किया था। भास्कर जोशी की मेहनत ने अल्मोड़ा के एक मामूली प्राइमरी स्कूल की तस्वीर पूरी तरह बदल कर रख दी है। आज बजेला गांव के इस स्कूल में स्मार्ट क्लास है, कंप्यूटर, खेलकूद का सामान और पेयजल की उपलब्धता भी है। बच्चों को प्रोजेक्टर पर पढ़ाया जाता है। शिक्षक भास्कर जोशी ने गांव की शिक्षित बेटियों को रोजगार भी दिया है। ये बेटियां गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं। जिन्हें डेढ़-डेढ़ हजार रुपये मानदेय दिया जाता है।

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भास्कर बच्चों के लिए खुद भी कोर्स तैयार करते हैं। पाठ्यक्रम को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। बच्चों को खेल-खेल में विज्ञान की पढ़ाई कराई जाती है। बेकार पड़े सामान का इस्तेमाल कैसे करना है ये भी बच्चों को बताया जाता है। अब भास्कर कोशिश कर रहे हैं कि स्कूल को कुछ इस तरह डेवलप किया जाए कि यहां पढ़े-लिखे बेरोजगार युवा भी कंप्यूटर की ट्रेनिंग ले सकें। आज हम भास्कर की सफल कोशिश को देख रहे हैं, लेकिन यहां तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। शुरुआती दिनों में गांव वाले अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे, बच्चों को मवेशी चराने के लिए जाना पड़ता था, ताकि चार पैसे की कमाई हो सके। भास्कर ने माता-पिता को बहुत समझाया, धीरे-धीरे गांव वाले उनकी बात समझ गए और बच्चों को स्कूल भेजने लगे। पहाड़ के हर गांव में भास्कर जोशी जैसा शिक्षक होना चाहिए, ऐसा होगा तो स्कूलों में ताले लटकाने की नौबत नहीं आएगी।